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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darśana, ācāra )
४२७. त्रिलोकसार
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Colophon
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त्रिभुवनसार अपारगुन, ज्ञायक नायक सत । त्रिभुवन हितकारी नमो, श्री अरहत महत ||
अर्थको जानता सता रागादिक त्यागि मोक्षपद को पावै है |
अव संस्कृत टीका अनुसार लिए मूलशास्त्र का अर्थ लिखिए है । इति श्री त्रिलोकंसार का टीका का पीठवध सम्पूर्णम् । विशेष - अन्त मे पीठबध सम्पूर्ण ऐसा लिखा है, लेकिन ग्रथ की भाषा
टीका लिखी जा चुकी है ।
है ।
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४२८. त्रिलोकसार
१५३
मगलमय मंगलकरन वीतराग विज्ञान नमो ताहि जाते भये अरिहतादि महान ||
इति श्री अरिष्ट नेम पुराण
1
अनुपलब्ध ।
४२६. त्रिलोकसार भाषा
देखे - क्र० ४२७ ।
अव संस्कृत टीका अनुसार लिए मूलशास्त्र का अर्थ लिखिए
इति श्री त्रिलोकसारसाषाटीका का पीठवध सम्पूर्ण । सवत् १८६६ वर्षे मिती सावन वदी दो लिखत भूपतिराम तिवारी, लिखी मोहोकमगज मध्ये 1
४३०. त्रिवर्णाचार (५ पर्व )
अथोच्यते त्रिवर्णाना शौचाचारविधिक्रम | शौचाचारविधिप्राप्ती देह सस्कतुमर्हसि ॥१॥ संस्कृतो देह एवासौ दीक्षणाद्यभिसम्मत | विशिष्ठान्वयजोऽप्यस्मं नेष्यतेऽयमसस्कृत. ॥२॥
तत्रोपनयादारभ्य समावर्तनपर्यन्तमुपनयनब्रह्मचारी । स्ती
सेवां कुर्वाणो जुगुप्सया गुरुसमक्षे तन्निवृत्त: आलम्वन ब्रह्मचाचारी । विवाहपूर्वक त्रिभुवनपरिग्रहारम्भाद् त्रियाप्रवृत्तो गृहस्थः । परिग्रहानु