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________________ १५० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colophon: इति तत्त्वार्थवार्तिकव्याख्यानालकारे दशमोध्याय समाप्त ॥ जीयाज्जगतिजिनेश्वरनिगदितधर्मप्रकाशक. सूरि. अभयेदुरितिख्यात परुवादिपितामह सततम् ।। वदे वालेदु मुनितममदवुधाणि गुर्णाननिधिम् यस्य वचस्तोऽशस्त स्वातघ्वत दुरस्तमपि नश्येत् ।। श्रीपचगुरुभ्यो नम. मगलमहा। शके २२६२ वर्तमान परिधावी सवत्सरे भाद्रपदशुक्लएकादश्या भानुवासरे समाप्तोऽय प्रथः ॥ दक्षिणकर्नाटदेशे उडुपी कार्ककप्रात्यदुर्गग्रामनिवासस्थरामकृष्णशास्त्रिण पुत्रो रगनाथ भट्टन लिखित पुस्तकम् ।। शुभ मगलानि भवतु ॥ देखे-जि. र० को०, पृ० १५६ । ४१६. कालिकद्रव्य .इत्यादि" इस गथ मे मात्र "त्रकाल्य द्रव्यपटक अर्थ सहित लिखा गया है। अन्त मे एक भजन भी है। ४२०. त्रैलोक्य प्रज्ञप्ति Opening : Closing : अविहकम्मवियना णिय कज्जाारण? ससारा । दिट्ठसलत्यसारासिद्धासिद्धि मम दिसतु ॥१॥ सूरि श्री जिनचा ह्रि स्मरणाधीन चेनसा । प्रपास्तिविहिता वासौमीहाख्येनसुधीमत्ता ॥१३॥ यत्रद्यक्ताप्पवधस्यादर्थे जमयावृत्त । तदाशोध्यवृधर्वाच्चमनत गन्दवारिधि ॥१२४।। Colophon : इति मूरि श्रीजिनचद्रातेवामिना पडित मेधाविना विरचिता प्रयस्ता प्रशस्ति ममाप्ता ॥ श्री सिंहपुरी जैननीय समीप सथवा ग्राम निवानी कायस्थ बटनप्रसाद ने श्री जैन सिद्धान्त भवन, आ लिखा ॥ न. १९८८ विक्रम । द्धान्त मैवन, आरा में
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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