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________________ १४८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devalcu mar Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhavan. Arrah ४१३. तत्वार्थबोध Opening : सिवमग दाइकमान, कर्मतिमिर गिरके हरने । सर्वतत्वमय ग्यान, वद जिणगुण हेतकू॥ Closing : सवठारास विप, अधिक गुन्यासी देम । कातिकसुद सासिपचमी, पूरनग्रथ असेस । मगल श्री अरिहत, सिधमगलदायक सदा । मगलमाधमहत, मगल जिनवर धर्मवर । Colophon : इति श्री तत्वार्यवोध ग्रथ मपूणम्। इति शुभ मिति आषाढ सुदी १२ सवत् १९८२ । जैमी प्रत पाई हती, तंसी दई उतार । भूलचूक जो होय सो, बुधजन लियौ सुधार ।। हस्ताक्षर प० चौबे लक्ष्मीनारायण के। ४१४. तत्वार्थमूत्र टोका Opening : देखे०-०, ४१० । Closing : इह भाति करि घणाही भेदास्यो सिद्ध हुआ सो सिद्धान्त से समझि लीज्यौ। Colophon : इति श्री तत्वार्थाधिगमै मोक्षशास्त्र दशमोध्यायः ।१०। श्री उमास्वामी विरचित सूत्र बालावोध टीका पाडे जैवतकृत सपूर्ण । मवत् १९०४ वैशाख शुक्ल १२ लिपि कृत इदम् । ४१५. तत्वार्थमूत्र वचनिका Opening : देखें-क्र० ४१० । Closing : जैसे ही कालादिक का विभागत अल्पवहुत्व जानना। ऐसे द्वादश अनुयोगनि करि सिद्धनि में भेद है और स्वरूप भेद नहीं है। Colophon: इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे दशमोध्यायः ॥१०॥ __ देखें-क्र. ४११।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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