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________________ १४२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jarn Oriental Library, Jain Siddh int Bhavan, Arrah ३६४. तत्वसार भाषा Opening | Closing : आदि सुखी अतज सुखी, सिद्धसिद्ध भगवान । निज प्रताप प्रलाप विन, जगदर्पण जग आन । सत्रहरी एकावने, पौष सुकल तिथि चार । जो ईश्वर के गुन लखै, सो पावै भवपार ॥ । नही है । ३६५. तत्वसार वचनिका Colophon . Opening i प्रणमि श्री अर्ह त · सिद्धनिकू शिरनाय । आचार्य उवझाय मुनि पूजू मनवचकाय ॥ Closing ! - - - पन्नालाल जु चौधरी विरचि जो कारक दुलीचदजी। Colophone इति ग्रन्य वचनिका बनने का सवध समाप्तम् । सवत् १९३८ का महावुदि १२ सोमवार । ३६६. तत्वानुशासन Opening सिद्धस्वार्थान शेषार्थ स्वरूपस्योपदेशकान । परापरगुरून्नत्वा वक्ष्ये तभ्वानुशासनम् ।। Closing : तेन प्रसिद्धधिषणेन गुरूपदेश, मासाद्य सिंफिसुखसपदुपाय भूतम् । तत्वानुशासनमिद जगते हिताय, श्री रामसेन विदुषाव्यरच स्फुटोर्थम् ॥ Colophon: इद पुस्तक परिधावि मवत्सरे उत्तरायणे अधिक आषाढमासे कृष्णपक्षे एकादश्याया सौम्यवासरे द्वाविंश घटिकाया दिवा च वेणूपुरस्त पन्नेचारीरित्तल विद्वत् वामनशर्मणा पचम पुत्र भग्दीति केशव शर्मणेन लिखित समाप्तमित्यर्थ श्री जिनेश्वराय नमः। देखे,--जि० २० को०, पृ० १५३ । ३९७• तत्वार्थसार Opening . मोक्षमार्गस्य नेनार भेत्तार कर्मभूभृताम् । ज्ञानार विश्वनशाना वदे तद्गुणलब्धये ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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