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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Librury Jain Siddhant Bhavan, Arrah Colonhon: अथप्रशस्ती । शुद्वद्धतप प्रभाव पवित्रपादपद्मराज किंजल्प
पुजस्यमन: कोणकदेशकोडीकृताखिलशास्त्रार्था तरस्य पडित श्री वधुदेवस्यगुण प्रबन्धानुस्मरणजातानुग्रहेण प्रमाणनमनिर्णीताखिलपदार्थप्रपचेन श्रीमद्भ जबलभीमभूपालमार्तउसभायामनेकधा लब्धतर्कचक्राकल्केनावलवरादीनामात्मनश्चोपकारार्थेन पाडिल्यमदविलासात्सुखवोधामिधा वृत्ति कृता महाभट्टारकेन कुभनगरवास्तव्येन पडित श्री योगदेवेन प्रकटयतु सशोध्य बुधायदत्तायुक्तमुक्त किञ्चिन्मति विभ्रममभवादिति । प्रचड पडित. मडलीमौनदीक्षागुरोर्यो योगदेव विदुष कृती सुखबोधतत्वार्थवृत्तौ दशम. पाद समाप्त । जैन सिद्धान्त भवन आरा मे शुभमिति आषाढ शुक्ल ५ वृहस्पतिवार स० १६६२ वी० स० २४६१ । ह. राशनलाल जैन लेखक ।
देखे-जि-र. को०, पृ० १५६ (१३) ।
३८६. स्वस्वरूप स्वानुभव सूचक ( सचित्र ) Opening :
अथ अनादि अनत जिनेश्वरमुर मरस सुदर वोध मयिपर ।
परम मगलदायक हैं सही, नमतहूइस कारण शुभ मही ।। Colsing :
__ बहुत क्या कहूँ ज्ञान अज्ञान सूर्य प्रकाशवत् नये कहू वान है न होगा। Colophon | इति श्री क्षुल्लक ब्रह्मचारी धर्मदास रचित स्वरूपपस्वानु
भव सूचक समाप्त । स० १६४६ आ० सु० १०। ; विशेष-(आठो कर्मों की प्रकृतियो को आठ चित्रो द्वारा दिखाया
गया है)।
३९०. स्वरूप स्वानुभव सम्यक् ज्ञान Opening : देखे-क्रम ३८६ । । Closing :
मेरे अर तेरे वीच मे कर्म है, सो म मेरे न तेरे ____ कर्म कर्म ही मे निश्चय है। Colophone नही है। विशेश-(१) क्र० ३८६ की ही प्रतिलिपि है।
(२) मात्र नामकरण मे थोडा सा अन्तर है । (३) पेज न० २, ६, ७, ८, ९, १०, १२, १३ और १४
'मे बने हुए है।