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१३७ Catalozue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
( Dharma, Darsana, Acira)
३८१. श्रावकाचार
Opening :
श्रीमग्जिनेन्द्रचन्द्रस्य नाद्रवान चन्द्रिकागिनाम् ।। हपीकदुष्टकर्माप्टधर्ममतापनभम् ॥१॥ दुराचारचयानान्त दु ख ग दोह हानये ।।
नवीजियुपानकाचार चारमुत्ति. सुखप्रदम् ।।९।। Cloting . जीवन्त मृतक मन्ये देटिन धर्मवजितम् ।।
मनो धर्मेण न गुको दीधजीवी भविष्यति ॥१०१।। परीरमउन शील स्वर्णत्दावह तनो. ॥
रागोवक्तस्य ताम्वून मत्येनवोज्वल मुखम् ॥१०२।। Colophon • प्रति श्री पूज्यपाद स्वामि विचित श्रावकाचार समाप्त ।।
शुमभयतु ग १९७६ भादो वदी ३ निप्रित पं० मूलचन्द्रेण जयपुरे ।
देगे--जि र पो, ३६५ । (X)
Catg of Skt & Pkt Ms., P. 696. ३८२. श्रावकाचार
Opening : गजत केवलज्ञान जुत, परमौदारिक काय ।
निरपि छवि भवि छफत है, पीरम सहज सुभाय ॥ Closing . अमे ताका वचन के अनुमारि देवगुरुधर्म का श्रद्धान करें।
ति कुदेवादिक का वर्णन सपूर्ण । Colophon
इति श्री श्रावकाचार अथ समाप्त । श्रीरस्तु लेखकपाठकयो लिपि कृत पडिन शिवलाल नगर भालपुरा मध्ये मिति आपाढ वदी ३ भूमि (भीम) वासरे पूर्णीकृत सम्वत् १८८८ का।
३८३. श्रावकाचार
Opening : देखे-क्र० ३८२ । Closing:
सर्वज्ञ कीतराग का वचन ताने तू अगीकार कर और ताले
सरूप अगीकार कर श्रद्धान कर। Colophon • इति कुदेवादिक का वर्णन पूर्ण । इति श्री श्रावकाचार
ग्रन्थ पूर्ण। सवत् १८५६ फाल्गुन शुक्ल अष्टमी ।