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________________ १३० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah ३५६ बाबू मुन्नीलाल जीके। श्लोक ॥ १२६० ॥ मिति जेठ वदी ५ रोज सनीचर। संवत् १९३३ साल के सपूर्ण भया। पत्र चौतीस । ३६०. सप्तपंचास दास्त्रविका Opening , अभिवन्द्य जिनान् वीरान् सज्ञानादि गुणात्मकान । कर्णाटभाषाया वक्ष्ये जकामास्रव सन्मते । ध्यानमुम मेनगे दिसदुदये गेय्यलिकर कृतपराध क्षतुमर्हति Closing : सतः। Colophon : मन्मथ नाम संवत्सरद श्रावग बहुल विदिगे बुधवारदल्लु मगलम् । ३६१. सत्वत्रिभगी Opening : पणमीय सुरेंद्रपूजिय पयकमल वड्डभाडममलगुण । पचासतावण वोछेह सुणुह भवियजणा ॥१॥ Closing : पचासवेहि विरमण पचिदिय णिगहोकसायजया ॥ तिहि दडेहि यविरदिस सारस संयमा भणियो । तिथयरातपि यराहट्टधर चकायअधकाय ।। देवायभोगभूमिआहारा अत्यिणस्थिणिहारा ॥ १६४ ॥ Colophon: इत्यास्रवबधउदयोदीरसत्वत्रिभगीमूल समाप्तः उडुयपुर प्रात दुर्ग ग्रामस्थ रामकृष्ण शास्त्रि तनयेन रगनाथ भट्टारव्येन लिखित्वा परिधाविवत्सरे वैशाख मासी शुक्लपक्षे पौणिग्या समापितस्यास्य प्रथस्य शुभमस्तु । ३६२. सत्यशासन परीक्षा Openingr विद्यानन्दाधिष स्वामी विद्वद्देवो जिनेश्वर । यो लोककहितस्तस्मै नमस्तात्स्वात्मलव्धये ।। Closing : तदेवमनेकवाधव सद्भावात् भादप्राभाकररिष्टम् । • भूयात् । Colophone नही है। देखे-जि० र० को, पृ. ४१२ । भद्र
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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