SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain. Siddhant Bhavan, Arrah Closing : ताका सुख की महिमा वचन अगोचर है। Colophon • इति श्री समाधिमरण सरूप सम्पूर्णम् । सवत् १८६२ आसोज सुदि ५ गुरुवारे लिखत महात्मा वकसराम सवाई जयपुर मध्ये । श्री चन्द्रप्रभ चैत्यालय । ३५४. समाधितन्त्र Opening : जिनान् प्रणम्याखिलकर्ममुक्तान गुरुन यदाचारपरान तथैव । समाधितन्त्रस्य करोमि वालाविवोधन भव्यविबोधनाय ।। Closing : इण ही आठ प्रकार का पृथक-२ जघन्य अतरासमय १ जाणिवा । Colophon • इति समाधितत्रसूत्र बालबोध समाप्ता। ग्रन्थसख्या ४८००, सवत् १८७४ शाके १७३९ । आषाढ शुक्ल १ रवि पुस्तकग्घुनाथशर्मणा लेषि पाठार्थ रत्नचदस्य । शुभ भूयात् । __ देखे, जि. र० को०, पृ० ४२१ । Catg. of Skt & pkt Ms , P. 703. ३५५. समाधितन्त्र सटीक Opneing : जिनान् प्रणम्याखिल कर्ममुक्तान गुरुन् सदाचार परात् तथैव। समाधितत्रस्य करोमि वालावबोधन . भव्य विवोधनाय ॥ Closing ! ' अर्घोदय सुकृतधी कृत्त वा समाधौ ॥ Colophoni ___वालबोध समाधितत्रसूत्र भव्यप्रबोधनाधिकारे आत्मर सप्रकाशे धर्माधिकार सम्पूर्णम् । सवत् १७८८ प्रवर्तमाने फागुण (फाल्गुन) वदी ११ तिथौ मुनि फत्तेसागरेण लिपि चक्रे । ३५६. समाधितन्त्र Opening ! Closing : Colophon. देखें-क्र० ३५४ । देखे-क्र० ३५४ । नही है।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy