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________________ ११८ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavaan, Arrab Opening : Cloing : (१) दि० जि. न. र०, पृ. ६४ । देखे- (२) जि० २० को०, पृ० २७६ । (३) प्र. जै० सा०, पृ १८० । (४) रा सू II, पृ १७२ । (५) रा सू III, पृ १८६ । (६) Catg of Skt & Pkt M3, P 673 ३२२. पुण्य पचीसी प्रथम प्रणाम अरिहत वहुरि श्रीसिद्ध नमीजे । __आचारज उवझाय तासु पदवदन कीजे । सत्रह से तेतीनके उन्म फागुगमाम । आदि पक्ष नमिभावमो कहै भगोती द्रास ।। इति पुण्य पचीसी। ३२३. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय परमपुरुष निज अर्थ को साधि भए गुणवृ द । आनदामृत्त चद को वदत्त ह्र सुषकद ।। अठारह से ऊपरे सवत् सत्ताईस । मास मागिमररतिससिर सुदि दोयज रजनीस ।। इति श्री पुरुषार्थसिद्धयुपाय । Colophon . Opening . Closing : Colophoni ३२४. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय Opening : देखें-क्र० ३२३ । Closing अठारह से ऊपरे सवत् है बीस मास । मार्गसिर शिशिर रितु, सुदी है जरनीस ॥ Colophon इति श्री अमृतचन्द्र सूरि कृत पुरुषार्थसिद्धयुपाय सम्पूर्णम् । इद पुस्तक लिखत हरचदराय श्रवक पल्लीवार गोटि गुजरात कास्यप गोत्र तस्य तनय रामदयाल निविसते कान्यकुब्जे मिति वैशाखमासे शुक्लपक्षे गुरुवासरे दशम्या सवत् विक्रमादित्यै १९४७ ॥ विशेष—इसके आवरण ( कूट) पर एक स्टीकर चिपका हुआ है
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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