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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Darsana, ācāra ) Opening Closing Colophon Opening Closing गई। शुभमिती पोपकृष्णा ७ मंगलवार विक्रम संवत् १९६२, हस्ताक्षर रोशनलाल जैन । Colophon. ११३ देखे - - ( १ ) दि० जि० ग्र०र०, पृ० ६१ । Opening : ३०७ परमात्म प्रकाश चिदान देकरूपाय जिनाय परमात्मने । परमात्मप्रकाशाय, निन्य सिद्धात्मने नमः ॥ परम पय गयाण सवो दिव्वकाउ, मणस मुणिवराण मुदो दिव्व जोई । विसय सुह रयाण दुलहो जोउ लोए, जयउ सिव मख्यो केवली कोवि वोहो || इति श्री योगीन्द्रदेव विरचित परमात्मप्रकाश सपूर्णम । मवत् १८२६ वर्षे मिती भादो वदी ११ एकादशी चद्रवासरे लिखित गुमीनीराम मौन पोयी गुन आगर लेखक पाठकयो शुभ अस्तु कल्याणमस्तु । (२) जै० ग्र० प्र० म०, प्रस्तावना, पृ० ५१ । (३) भ सम्प्र, पृ १४२, १५४, १८३, १६७ देखे --- जि र को, पृ २३७ । Catg of Skt & Pkt Ms, P. 665. ३०८ परमात्मप्रकाश वचनिका चिदानद चिद्रूप जो, जिन परमातम देव । सिद्धरूप सुविशुद्ध जो, नमौ ताहि करि सेव ॥ ऐसा श्री जिन भाषित शासन सुखनिक कैसे करानिकरि । वृद्धि प्राप्त होऊ । श्री योगिन्द्राचार्यकृत मूल दोहा ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका दौलतराम कृत भाषा वचनिका सम्पूर्ण भई, सवत् १८६१ । ३०९ परमात्म वच निका चेतन आनद एक रूप है, कर्मरूपी वैरीको जीते ताते जिन है ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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