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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jinen, Oriental Library, Jain Siddhani Bhavan, Arrah
२५७. जलगालनी Opening : प्रथम वदे जिवदेव अनत । परम सुभग शीतल शुभ सत ॥
सारद गुरं वदं प्रमाण । जलगालण विधि करु वखाण ।। Closing : जो जलगालि जुगतिसु जिहि विधि कहु पुराण ।
गुलाल ब्रह्मइत नुरस किहिऊ, लोकमधि परमान ॥३१॥ Colophon: इति जलगाल परिसपूर्णम् । भट्टारक शुमकीर्ति तत्शिष्य
स्वामी मेधकीति लिखितम् । शुभभवतु ।
२५८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति व्याख्यान Opening : जबूद्वीपमटीपणक । पचवीसकोडाकोडी उद्धार, पल्य । सजेत्ता
रोम हवति तेत्ता द्वीपसमुद्रा भवति । Closing . . " गजदत-२०, वृषभगिरि १७०, मलेच्छखड ८५०,
कुभोगभूमि ९६, समुद्र २, तोरणद्वार २२५०, एव ज्ञातव्यम् ।। Colophont इति श्री पद्मनदी सिद्धातिवचनकाकृत जवूद्वीपप्रज्ञप्ति
व्याख्यानक कृत समाप्तम् । कर्मक्षयोनिमित्तम् । सवत् १९७६ आषाढकृष्णा ३ भौमवासरे श्री जैन सिद्धान्तभवन आरा के लिए प० भुजवलीशास्त्री की अध्यक्षता में काशीमण्डलान्तर्गत सथवाग्रामनिवामी वटुकप्रसाद कायस्य ने लिखा। देखें, Catg of Skt & Pkt Ms., P. 64.
२५६. जैनाचार
Opening :
Closings
श्रीमदमरराजनुतपादसरसिज सोमभास्कर कोटितेज। कामितार्थवनीवसुरवीजसुखबीजक्षेमदोरि सु जिनराज ।। दिनकरशशिकोटिभासुर सुज्ञानतनुरूपपुण्यकलाप । गुणमणिमयदीपयन्नधमताप तणिसिसतेसु निर्लेप ।। समाप्तम् ।
Colophon:
Opening i
२६० जिनसंहिता मंगल भगवानहन्मगल भगवान् जिन.।। मगल प्रथमाचार्यों मगल वृषभेश्वर ॥१॥