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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing . भागिनि रथगोत्र निष्कलङ्क प्रवर गङ्गदेवसूत्रम् अग्रायणीय
शाखा। Colophon: नही है।
२५१. गुणस्थान चर्चा
Opening : गुन आतमीक परिनाम गुनी जीऊ नाम पदार्य ते
आतमी परिनामतीन जातके, शुभ, अशुभ,
शुद्ध " " । Closing :
ए पाच भाव सिद्ध के रहे, तिन सहित अविनासी टकोत्कीर्ण
उत्कृष्ट परमातम Colophon : यह चौदह गुणस्थानक कथनरूप सवेपमान् जिनवाणी
अनुसार कथनकर पूरनकिया। सवत् १७३६ मगसिर वदी त्रयोदशी तिथौ।
२५२. गुरोपदेश श्रावकाचार
Opening:
पचपरम मंगलकरन, उत्तम लोक मझारि ।
असग्न की ये ही सरन, नमू सीस करधारि ।। Closing . माधौ नूपपुर जाहि डालूराम न्यौ गयाहि, इप्टदेववललहि
उमगको अनाय है। गुरुउपदेशसार श्रावक आचारग्रन्थ, पूरनता पाहि अक्ष पदवी
को दायक है ॥ Colophon: ___ इति श्री गुरोपदेश श्रावकाचार सम्पूर्णम् । इति शुभ मिती
भाद्रपदसुदी ३ शनिवार सम्वत् १९१२। हस्ताक्षर पं. श्री वञ्चलाल चौबे के ।
२५३. गुरुशिष्यबोध
Opening:
जनत जुगत जगदीश से है वो बडो सुजान । साकू वदी भाव से, सौ परमातम जान ।। • अर जैसो और है तैसो तू नाही,
Closing :