SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing . भागिनि रथगोत्र निष्कलङ्क प्रवर गङ्गदेवसूत्रम् अग्रायणीय शाखा। Colophon: नही है। २५१. गुणस्थान चर्चा Opening : गुन आतमीक परिनाम गुनी जीऊ नाम पदार्य ते आतमी परिनामतीन जातके, शुभ, अशुभ, शुद्ध " " । Closing : ए पाच भाव सिद्ध के रहे, तिन सहित अविनासी टकोत्कीर्ण उत्कृष्ट परमातम Colophon : यह चौदह गुणस्थानक कथनरूप सवेपमान् जिनवाणी अनुसार कथनकर पूरनकिया। सवत् १७३६ मगसिर वदी त्रयोदशी तिथौ। २५२. गुरोपदेश श्रावकाचार Opening: पचपरम मंगलकरन, उत्तम लोक मझारि । असग्न की ये ही सरन, नमू सीस करधारि ।। Closing . माधौ नूपपुर जाहि डालूराम न्यौ गयाहि, इप्टदेववललहि उमगको अनाय है। गुरुउपदेशसार श्रावक आचारग्रन्थ, पूरनता पाहि अक्ष पदवी को दायक है ॥ Colophon: ___ इति श्री गुरोपदेश श्रावकाचार सम्पूर्णम् । इति शुभ मिती भाद्रपदसुदी ३ शनिवार सम्वत् १९१२। हस्ताक्षर पं. श्री वञ्चलाल चौबे के । २५३. गुरुशिष्यबोध Opening: जनत जुगत जगदीश से है वो बडो सुजान । साकू वदी भाव से, सौ परमातम जान ।। • अर जैसो और है तैसो तू नाही, Closing :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy