SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jaia Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrab Closing . आासेन गुणसमूह सधार्याऽजित सेन गुरुर्भुवनगुरु. यस्य गोम्मटो जयतु । Colophon: नही है। २४४. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड) Opening - वदौ ज्ञानानन्दकर, नेमिचद गुणकद । माधव वदित विमल पद पुण्य पयोनिधि नव ।। Closing : धन्य धन्य तुम तुमही सब काज भयो कर जोरि बारवार वदना हमारी है। मगल कल्यान सुख ऐसो अब चाहत हौं होऊ मेरी ऐसी दशा जैसी तुम्हारी है ॥ Colophon: इति श्रीमत् लब्धिसार वा क्षपणासार सहित गोमटसार शास्त्र की सम्यग्ज्ञान चद्रिका नामा भाषाटीका सपूर्ण। श्री महाराजा श्री राजाराम चद्रराज्य शुभ। लिख्यत नग्रचद्रापुरी मध्ये हीराधर जो वाचै सुनै ताकी-श्री शब्द वचन । सवत १८४८ आपाढ़ सुदी १५ दिन शुभ भवत् । Opening : Closing : २४५. गोम्मटसार (कर्मकांड) पगमिय सिरसा णैमि गुणरयणविभूषण महावीर । सम्मत्तरयणनिलय पयडिसमुक्कित्तण वोन्छ । पाणवधादीसु रदो जिणपूआमोक्खमग्गविग्घयरो। अज्जोड अतराय ण लहइ इच्छिय जेण ॥ इति श्री कर्मकाण्ड सम्पूर्णम् । देखे, जि० र० को०, पृ० ११० Catg, of Skt & pkt. Ms., P. 608. Catg. of Skt. Ms., P.310. Colophon २४६. गोम्मटसार (कर्मकांड) देखें-क्र. २४५ । Opening :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy