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________________ ६० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Labrary Jun. Beddhant Bhavan, Arrah २३७. धर्मविलास Opening : वदौ आदि जिनेश पाप तमहरन दिनेश्वर । वदत हौ प्रभु चंद चद दुख तपत हनेश्वर ।। Closing : देखे, ऋ० २३६ । Colophon : इति श्री श्री धर्म विलास भापा महारथ सुकवि द्यानतराय अग्रवालकृत उनासी अधिकार मपूर्ण। सवत् १९३४ मिति माह (माध) सुदी ६ रोज (दिन) सोमवार। लिखत पीतम्वर दास जैमवार मोज सह्यऊ मध्ये परगन्ह सादावाद जिला मपुरा। लिखायत लाला जगभूषणदास जी अगरवाले मोजे आरे वाले। २३८. धर्मविलास Opening : देखे-ऋ० २३७ । Closing : कनक किरती करी भाव, श्री जिन भक्ति रचे जी। पढे सुणे नर नारि सुरग सुख लह्यो जी। Colophon: इति विनती सम्पूर्णम । विशेष- प्रति के अन्त मे एक विनती है । प्रशस्ति नहीं। Opening : Closing - Colophoni २३६. धर्मो देशकाव्य टीका श्री पार्श्व प्रणिपत्यादौ श्री गुरू भारती तथा। धर्मोपदेश ग्रन्थस्य वृत्तिरेषा विधीयते ॥ . यावन्मेरु क्षितिभृत् यावन्नक्षत्रमडल विलसत् । तावन्नन्दतु नित्य प्रथ. सवृत्ति सदिनोयम् ।। इति श्री धर्मोपदेश काव्य सवृत्तिक सम्पूर्णम् । शास्त्राभ्यास सदाकार्या विवुधे धर्मभीरुभिः । पुस्तक साधनं तस्य तस्माद्रक्षेन् पुस्तकम् ॥ १॥ अचनास्ति जिनाधीश नास्ति सप्रति केवली। बाधारः पुस्तकस्यैव नृणा सम्यक्त्वधारिणाम् ।।२॥ शृण्वन्ति जिनवाणी य गद्यपद्यमयरी बुधाः।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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