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________________ 55 श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shre Devakumar Jain, Oriental Library, Jaun Siddhant Bhavan, Airah Colophon : Opening : Closing : Colophon : Opening: Closing. Colophon : Opening Closing : Colophon : इति श्री सूरि श्री जयसेन विरचिते धर्मरत्नाकरनामशास्त्र सम्पूर्णम् । मिती वैशाख सुदी दोयज ( २ ) सवत् १९८५ भृगुवासरे शुभ लिषा भुजवल प्रसाद जैनी श्री जैन सिद्धान्त भवन आरा के लिए | इत्यलम् । देखे -- जि० २० को०, पृ० १६२ । २३१. धर्मरत्नाकर देखे, क्र० २३० ॥ देखें, ऋ० २३० । इति श्री सूरि श्री जयसेन विरचिते धर्मरत्नाकरनामशास्त्र सपूर्णम् । सवत् १९१० का मार्गशीर्ष वदी ५ बुधवासरे शुभम् । २३२. धर्मरत्नोद्योत मगल लोकोत्तम नमो श्रीजिन सिद्ध महत । साधु केवली कथित वर, धरम शरण जयवत ॥ स्याद्वाद आगम निर्दोष, अन्य सर्व ही है ज सदोष ॥ त्याग दोप गुण धरे विचार । हेतु विचय ध्यान निर्द्वार ॥ इति श्री बावू जगमोहन लाल कृत धर्मरत्न ग्रन्ये मध्य आराधना नाम नवमी अधिकार ||६|| याके पूर्ण होते श्री धर्मरत्नग्रन्य पूर्णगया। आदि मध्य अरू अत में, मंगल सर्वप्रकार | श्रीजिनेन्द्र पद कज जुग, नमो सुकर सिरधार ॥ तकंवात लागे नही नहि आज्ञानतमग्च । धर्मरत्न उद्योन मे करि उद्यम सुय मच ॥ २३३. धर्मरत्नोद्योत देणे, ऋ० २३२ ॥ वानिक कृ पठनार्थम् । उपमा अहमिन्द्र, है मही स्वाधीन । हे पुरातन अयं की दाहे व नवीन ॥ इति श्री धर्मरत्नग्रन्ध सम्पूर्णम् । सवत् १९८८ मिि ६ रविवासरे निग्रित नीarcaina meerata
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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