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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shre Devakumar Jain, Oriental Library, Jaun Siddhant Bhavan, Airah
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इति श्री सूरि श्री जयसेन विरचिते धर्मरत्नाकरनामशास्त्र सम्पूर्णम् । मिती वैशाख सुदी दोयज ( २ ) सवत् १९८५ भृगुवासरे शुभ लिषा भुजवल प्रसाद जैनी श्री जैन सिद्धान्त भवन आरा के लिए | इत्यलम् ।
देखे -- जि० २० को०, पृ० १६२ ।
२३१. धर्मरत्नाकर
देखे, क्र० २३० ॥
देखें, ऋ० २३० ।
इति श्री सूरि श्री जयसेन विरचिते धर्मरत्नाकरनामशास्त्र सपूर्णम् । सवत् १९१० का मार्गशीर्ष वदी ५ बुधवासरे शुभम् ।
२३२. धर्मरत्नोद्योत
मगल लोकोत्तम नमो श्रीजिन सिद्ध महत । साधु केवली कथित वर, धरम शरण जयवत ॥ स्याद्वाद आगम निर्दोष, अन्य सर्व ही है ज सदोष ॥
त्याग दोप गुण धरे विचार । हेतु विचय ध्यान निर्द्वार ॥
इति श्री बावू जगमोहन लाल कृत धर्मरत्न ग्रन्ये मध्य आराधना नाम नवमी अधिकार ||६|| याके पूर्ण होते श्री धर्मरत्नग्रन्य
पूर्णगया।
आदि मध्य अरू अत में, मंगल सर्वप्रकार | श्रीजिनेन्द्र पद कज जुग, नमो सुकर सिरधार ॥ तकंवात लागे नही नहि आज्ञानतमग्च । धर्मरत्न उद्योन मे करि उद्यम सुय मच ॥ २३३. धर्मरत्नोद्योत
देणे, ऋ० २३२ ॥
वानिक कृ पठनार्थम् ।
उपमा
अहमिन्द्र, है मही स्वाधीन ।
हे पुरातन अयं की दाहे व नवीन ॥
इति श्री धर्मरत्नग्रन्ध सम्पूर्णम् । सवत् १९८८ मिि ६ रविवासरे निग्रित नीarcaina meerata