________________
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artah
Closing :
णिक्कम्मा अट्टगुण किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा ।
लोयग्गठिदा णिच्चा उपादवयेहिं मजुत्ता ।। अनुपलब्ध।
Colophon :
२१७. द्रव्यसंग्रह
Opering : Closing !
देखे ऋ० २१३ ।'
कुकया के नासनि कू बुद्धि के प्रकाशनि कू।
भाषा यह प्रथ भयो सम्यक समाज जी ।। इति श्रीद्रव्यमग्रह भाषा और प्राकृत सम्पूर्णम् ।
Colophon :
२५०. द्रव्यसंग्रह
Opening : देखे-० २१३ । Closing |
द्यानत तनक बुद्धि तापरि बखान करी, वाल रीति धरी ढकी लीजो गुणसाज जी। कुकथा के नाशन को बुद्धि के प्रकाशन को,
भाषा यह अथ भयो सम्यक् समाज जी ॥ Colopnon I ___ इति द्रव्यसग्रह नेमिचन्द्राचार्य विरचितमिद पचधा द्रव्यसग्रह
समाप्त । श्रीरस्तु। स. १९६२ । नेत्ररसाकेन्दुवत्सरे विक्रमनृपस्य वर्तमाने माघमासे तमपक्षे वाणतिथौ शशिवासरे लिपिकृतम् । सीताराम करेण चक्षुषापि बुद्धिमदतया विशेष कथ' शक्यम् । इदमपि विद्वास पठनीयाः। शुभमस्तु ।
२१६. द्रव्यसंग्रह . Opening : देखें, ऋ० २१३ । Closing : मंगलकरण परम सुखधाम । द्रव्यसंग्रह प्रति करौं प्रणाम ॥
आगे चेतन कर्मचरित्र। वरनी भाषा बंध कवित्त ।। Colophon • इति श्री दर्वसग्रह प्रथ गाथा कवित्त वध 'सम्पूर्णम् । विशेष-अन्त मे चेतन कर्म चरित्र प्रारम्भ करने की बात लिखी है लेकिन
लिखा नहीं गया है। । .:.
-
"i