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________________ ८२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain 8-ddhant Bhavan, Arrab Closing : विशेष विद्वान होय सो अथ के अभिप्राय स लिषी बातो नौसै नवति की जाण और शास्त्रनत लिखी बात यह अवार की ___ स वत् १९२३ की माघ सुदि १० की जान, ऐस जानना । Colophon : इति श्री दर्शनमार समाप्तः । षट्दर्शन अरू पच मिथ्यात जैनाभास पच अधबात । अरू कलि आचार शास्त्र निरूपण सार ।। २११. दसलक्षणधर्म Opening : ॐकार कू नमनकरि, नमूसारदा माय । तिनि काराग्रहमे टिक, श्रीजिन सीस नवाय ।। Closing . . सम्यक् दृष्टि के तो असी वांछा है। Colophon : इति दसलक्षणधर्म कथन भाषा वचनिका सम्पूर्णम् । मिति भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी गुरुवार सवत् विक्रम १९७८ । २१२. दानशासन Opening : . यस्य पादाब्जसद्गन्धाघ्राणनिमुक्तकल्मषा । ये भव्या. सन्ति त देवं जिनेन्द्र प्रणमाम्यहम् ।।१।। दान वक्ष्येऽथ वारीव शस्यसम्पत्ति कारणम् । क्षेत्रोप्त फलतीव स्यात् सर्वस्त्रीषु सम सुखम् ।। २॥ Closing : मत समस्तैऋषिभिर्यदाहृत प्रभासुरात्मावनदानशासनम् । मुदे सतां पुण्यधन समजित दानानि दद्यान्मुनये विचार्य तत् ।। Colophon : शाकाब्दे त्रियुगाग्निशीतगुणितेऽतीते वृषे वत्सरे माघे मासि च शुक्लपक्षदशमे श्री वासुपूज्यर्षिणा। प्रोक्त पावनदानशासनमिद ज्ञात्वाहित कुर्वताम् दान स्वर्णपरीक्षका इव सदा पात्रत्रये धार्मिकाः ।। समाप्तमिदं, दानशासनम् देखे-जि० २० को, पृ० १७३ । २१३. द्रव्यसंग्रह जीवमजीव दव जिणवरवसहेण जेण एिछिटुं। देविंदविंदवद वदेत सव्वदा सिरसा ।।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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