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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain 8-ddhant Bhavan, Arrab
Closing : विशेष विद्वान होय सो अथ के अभिप्राय स लिषी बातो
नौसै नवति की जाण और शास्त्रनत लिखी बात यह अवार की
___ स वत् १९२३ की माघ सुदि १० की जान, ऐस जानना । Colophon : इति श्री दर्शनमार समाप्तः ।
षट्दर्शन अरू पच मिथ्यात जैनाभास पच अधबात ।
अरू कलि आचार शास्त्र निरूपण सार ।।
२११. दसलक्षणधर्म
Opening :
ॐकार कू नमनकरि, नमूसारदा माय ।
तिनि काराग्रहमे टिक, श्रीजिन सीस नवाय ।। Closing . . सम्यक् दृष्टि के तो असी वांछा है। Colophon : इति दसलक्षणधर्म कथन भाषा वचनिका सम्पूर्णम् ।
मिति भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी गुरुवार सवत् विक्रम १९७८ ।
२१२. दानशासन Opening : . यस्य पादाब्जसद्गन्धाघ्राणनिमुक्तकल्मषा ।
ये भव्या. सन्ति त देवं जिनेन्द्र प्रणमाम्यहम् ।।१।। दान वक्ष्येऽथ वारीव शस्यसम्पत्ति कारणम् ।
क्षेत्रोप्त फलतीव स्यात् सर्वस्त्रीषु सम सुखम् ।। २॥ Closing : मत समस्तैऋषिभिर्यदाहृत प्रभासुरात्मावनदानशासनम् ।
मुदे सतां पुण्यधन समजित दानानि दद्यान्मुनये विचार्य तत् ।। Colophon : शाकाब्दे त्रियुगाग्निशीतगुणितेऽतीते वृषे वत्सरे
माघे मासि च शुक्लपक्षदशमे श्री वासुपूज्यर्षिणा। प्रोक्त पावनदानशासनमिद ज्ञात्वाहित कुर्वताम् दान स्वर्णपरीक्षका इव सदा पात्रत्रये धार्मिकाः ।। समाप्तमिदं, दानशासनम्
देखे-जि० २० को, पृ० १७३ । २१३. द्रव्यसंग्रह
जीवमजीव दव जिणवरवसहेण जेण एिछिटुं। देविंदविंदवद वदेत सव्वदा सिरसा ।।