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________________ ७६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artah Colophon: इति चरचा नामावली सपूर्णम् । शुभ भवतु मगलम् । मिती भादौ वदी ८ सवत् १९४२ मुक्काम चन्द्रापुरीमध्ये लिख्यत प० श्री चोवे मथुरापरसाद । १६२. चर्चा शतक वचनिका Opening : जै सरवज्ञ अलोकलोक इक उकवतदेखै । हस्तामल जोलीक हाथ जो सर्व विशेखै ॥ Closing : तात पदार्थ हम सरदहा भली प्रकार जानना। इति कहिये इस प्रकार चरचा कहिये सिद्धान्त की रदवदल सतक कहै सोकवित्त सपूर्णम् । करता द्यानतराय टीका का करता हरजीमल शुद्धजनी पाणीयधिया । १०४ । Colophon: इति चरचाशतक टीका सपूर्ण । शुभमिती असाढ कृष्णा ४ सवत् १९१४ गुरुवार लिख्यत नदराम अग्रवाल। श्लोक सख्या २०४० । १६३. चर्चा शतक वचनिका Opening , Closing : देखे, ऋ० १६२ । जगमहादेव है रूद्रपद कृष्ण नामहर जानिये। । द्यानतकुलकर मैनाभनृप भीम बली भुव मानिये ॥ अनुपलब्ध। Colophoni १९४. चर्चा शतक वनिका Opening i Closing : देखे-क्र० १९२। चरचा सुख सौं भने सुनै नहि प्राणी कानन, केई सुनि घरि जाय नाहि भषि फिरि आनन । तिनको लखि उपगारसार यह, शतक वनाई, पढत सुनत ह बुद्धि शुद्ध जिनवाणी गाई । इसमे अनेक सिद्धान्त का मथन कथन द्यानत कहा,
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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