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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Artah
Colophon:
इति चरचा नामावली सपूर्णम् । शुभ भवतु मगलम् । मिती भादौ वदी ८ सवत् १९४२ मुक्काम चन्द्रापुरीमध्ये लिख्यत प० श्री चोवे मथुरापरसाद ।
१६२. चर्चा शतक वचनिका
Opening : जै सरवज्ञ अलोकलोक इक उकवतदेखै ।
हस्तामल जोलीक हाथ जो सर्व विशेखै ॥ Closing : तात पदार्थ हम सरदहा भली प्रकार जानना। इति
कहिये इस प्रकार चरचा कहिये सिद्धान्त की रदवदल सतक कहै सोकवित्त सपूर्णम् । करता द्यानतराय टीका का करता हरजीमल
शुद्धजनी पाणीयधिया । १०४ । Colophon: इति चरचाशतक टीका सपूर्ण । शुभमिती असाढ कृष्णा
४ सवत् १९१४ गुरुवार लिख्यत नदराम अग्रवाल। श्लोक सख्या २०४० ।
१६३. चर्चा शतक वचनिका
Opening , Closing :
देखे, ऋ० १६२ ।
जगमहादेव है रूद्रपद कृष्ण नामहर जानिये। ।
द्यानतकुलकर मैनाभनृप भीम बली भुव मानिये ॥ अनुपलब्ध।
Colophoni
१९४. चर्चा शतक वनिका
Opening i Closing :
देखे-क्र० १९२।
चरचा सुख सौं भने सुनै नहि प्राणी कानन, केई सुनि घरि जाय नाहि भषि फिरि आनन । तिनको लखि उपगारसार यह, शतक वनाई, पढत सुनत ह बुद्धि शुद्ध जिनवाणी गाई । इसमे अनेक सिद्धान्त का मथन कथन द्यानत कहा,