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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhratisha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darśana, ācāra ) Opening! Closing Colophon Opening Closing Colopbon : १८४. ब्रह्मचर्याष्टक कायोत्सर्गायतागो जयतिजिनपतिर्नाभिसुनु महात्मा । मध्यान्तेयस्य भास्वानुपरिपरिगते राजतेस्मोग्रमूर्ति ॥ चक्र कर्मेन्धनानामतिबहुदहतो दूरमैदास्य Opening! • त्यादिना ॥ मया पद्यनन्दिमुनिना मुमुक्षुजन प्रति युवती स्त्रीसगति वर्जिन अष्टक भणित कथितम्, सुरतरागसमुद्रगता प्राप्ताजना लोका अजमयि मुनी मुनीश्वरे क्रुद्ध क्रोध. माकुरुत माकुर्वंतु मयि पद्मनंदिनी | इति श्री ब्रह्मचार्याष्टकम् समाप्तम् । शुभ सवत् १९३७ भादव सुदी ५ गुरुवार लिखितम् सुगनचंद पाल्मग्राममध्ये | शुभ भवतु | देखे - जि० र० को०, पृ० २५६ । १८५ ब्रह्म विलास ओकार गुण अतिअगम, पचपरमेष्ठि निवास । प्रथम तासु वदन कियौ लहियह ब्रह्मविलास ॥ विशेष- इसके अन्तिम पद्यं ही प्रशस्ति सूचक हैं । ७३ जामे निज आतम की कथा, ब्रह्मविलास नाम है जथा । बुद्धिवत हसियो मतकोय, अल्पमति भाषाकवि होय ॥ भूलचूक निजनेन निहारि, शुद्ध कीजियो अर्थविचारी । सवत् सत्रह से पचावन ॥ नही है । १८६ ब्रह्म विलास प्रथम प्रणमि अरिहत बहुरि श्री सिद्ध नमीज्जं । आचारिज उपझाय तासु पदवदन किज्जै ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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