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Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts
( Dharma, Darsana, Acāra)
धर्म, दर्शन, आचार
१५६. अध्यात्मकल्पद्रुम
Opening
नम प्रवचनाय । अथाय श्रीमान् शातनामरसाधिराज सकलागमादिसुशास्त्रास्मरिवायनिषद्भूतसुधारसाधमाऐहिकामुप्मिकामनतानदोहसाधनतया पारमार्थिकोपादश्यतयमवरससारभूत ज्ञाताशातरसभावनात्माऽध्यात्मकल्पद्रुमाभिधान ग्रथातरग्रथननिपुणेन पद्य सदर्षेण
भाव्यते । Closing : इममितिमानधीत्यवित्तेरम यतियो विरमत्यय भवादाग ।
सच नियत मनोरमेतवास्मिन् सह नव वैरिजयश्रियाशिव श्री। Colophone इति नवमश्रीशातरसभावनास्वयो अध्यात्मकल्पद्रुमग्रथोऽय
जयअके। श्री मुनिसु दरभूरिभि कृतम् । विशेष-यह अथ करीब वि० म० १८०० से भी कम का ज्ञात होता है।
__ देखे, जि. र० को०, पृ० ५।
१५७. अध्यात्म बारखडी
Opening :
खोर तिलक विदी, अग बाप उरमाल । यामै तो प्रभु ना मिले, पेट भराई चाल ।।
Closing :
ग्यान हीन जानो नही, मनमे उठी नरग । धरम ध्यान के कारन, चेतन रचे सुचग ॥
Colophon :
इति अध्यात्म बारखडी समाप्त ।
१५८. अन्यमतसार
Opening :
आदिनाथ भगवान की वदना करि ससारके हितके निमित्त जैनमतधर्मकी प्रसशाकरि मुख्यदया धर्म की धारना करना श्रेष्ठ है