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________________ ६० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Lrbrary, Jain Siddhant Bhavan, Arrah १४६. वर्धमानचरित्र (१९ अधिकार) Opening : जिनेशे विश्वनाथाय घनतगुगसिंधवे । धर्मचक्रभृतेमूद्ध र्ना श्री वीरस्वामिने नम ॥ Closing : त्रिसहस्त्राधिका पच विशदश्लोका भवति । यत्नेन गुणिता सर्वे चरित्रस्यास्य सन्मते ।। Colophon : इति भट्टारक श्रीसकलकीतिविरचिते श्री वीरवद्ध मान चरित्रे श्रेणिकाभयकुमारो भवावली भगवनिर्वाणगमनवर्णनो नामकोनविंशोधिकार । ग्रथ सख्या ३०३५ । सवत् १८८६ का मिति माघकृष्णत्रयोदश्या गुरुवासरे श्री काष्ठासघे माथुरान्वये पुष्करगणेलोहाचार्याम्नाये भट्टारकश्री सहस्त्रकीति देवा तत्पट्ट भट्टारक श्री महीचददेवा. तत्पट्ट भट्टारक श्रीदेवेन्द्रकीतिदेवा तत्पट्ट भट्टारक श्री जगत्कीर्तिदेवा तल्प? भट्टारक श्रीललितकीर्ति वर्तमाने तेनेद पुस्तक लिखापित विराटनगर मध्ये कु थुनायचैत्यालयमध्ये इद पुस्तक लिपिकृतम् । तैलाद्रक्षेजलाद्रक्षेद्रक्षेसिथलबधनात् । मूर्खहस्ते न दात्तव्य एव वदति पुस्तकम् ॥ जवलगमेरु अमिग्ग है तवलग ससिअरु सूर । तब लग यह पुस्तक रहो दुर्नय हस्तकर दूर ।। द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ० ३४३ । Catg. of Skt & Fkt. Me., P 689 १५०. वर्तमान पुराण Opening ! श्री जिनवर्द्धमान इह नाम, साथ विराजतु है गुणधाम । घातिकर्म क्षय ते वृद्धि जोय, ज्ञानी तणी मम दीजै सोय । Closing: महावीर पुराण के, श्लोक अनुष्टुप् जान । दोय सहस्त्र नवशतक है सख्या लयो शुभ जान ।। Colophon: इत्या त्रिपण्ठि लक्षणमहापुराणेमग्रहे भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीतानुसारेण श्री उत्तरपुराणस्य भाषाया श्री वर्तमानपुराण परिस
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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