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श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली
Shri Devakumar Jain Oriental Library. Jain Siddhant Bhavan, Arrah
१४४ । २. सुदर्शन सेठ कथा
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तदा सुदर्शन. स्वामी तस्मिन्धोरोपमर्ग के । ध्यानावासे स्थित तत्र मेरुवन्निश्चला सय ॥ किचिदून: परित्यक्त कायाकारोप्यकायक 1 त्रैलोक्य शिखरारूढः तनुवाते स्थिर स्थित ॥
नही है ।
१४५. सुगंधदशमी कथा
श्री जिनसारद मनमे धरू । सुहगुरु नै नित वदन करु ॥ साधत पद वदो सदा । कथा कहु दशमीनी मुदा ॥ ए व्रत जे नर नारी करें, ते भौसागर ते ओतरै । छदै पाप सकल सुख भरें, ब्रह्मज्ञानसार उच्चरे ॥
इति सुगधदशमी कथा सम्पूर्णम् ।
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१४६. सुकोशल चरित्र
जिवरमुणिविंद हो थुवसयइदहु चरणजुवलु पणवेवित हो || कलिमलदुहनासण सुहणयसासणु चरिउ भसामि पुक्कोशल हो || यद्दिवरा ।
एहुधरा ॥
जा महिरयणायरु हिससिभायरू कुलगिरिवरकण तावाइ जत वुहहि णिन्तउ चरिउ पवट्ठउ
इय सुकौसल चरिए छउमधी सम्मत्तो ॥ ६ ॥
यह प्रति सु० देहली खजूर की मसजिद वाले नये पचायती मंदिर मे से सवत् १६३३ विक्रम की लिखी हुई प्रति से लिखी जो कि बाबू देवकुमार जी द्वारा स्थापित श्री जैन सिद्धान्त भवन आरा के लिए सग्रहार्थं विक्रम् सवत् १६८७ के मार्गशीर्ष कृष्ण १४ को लिखकर तैयार हुई । इति शुभम् ।
द्रष्टव्य- जि० २० को ०, पृ ४४४ ।