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________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Purana, Carita, Kathā ) Openin Closing Colophon Olosing Closing Colophon. तम्य भार्या गोजाई ज्ञानावरणी कर्म क्षयार्थ गोमश्री अधिकार्य पुत्तलिफा पुस्तक दत्तन् । कल्याण भवनु । भट्टारक माहेन्द्रसेण १२४. शय्यादान वंक चूली कथा वयादानगुणगयात्री सवेगरनविका । गाव्यमननदित्री चकचूल काधान्यात् ॥ इत्येव नृपनन्दन प्रतिदिन नि शेषपापोद्यतः, यादानमनुत्तर गुणयता दत्वा मुनीना मुदा । प्रति मन्यादाने यकनूनी कथा | ५२५ शांतिनाथ पुराण ( १६ मर्ग ) ४६ नम श्रीणातिनायाय जगच्छाति वि धायिने ॥ कृन्न कम्मघाताय पानये नवकम्मणाम् ॥ १ ॥ अन्य शातिर्वारस्य शया एलोका. सुलेखर्क ॥ पचमप्नत्यधिकास्त्रिचरितप्रमा ।। ४१७ ॥ 1 ति श्रीणातिनायचरित्रे भट्टारक श्रीमकल कीतिविरचिते श्री णातिनाश्रममवसरण वग्मोपदश मोक्षगमनवर्णनो नाम पोडशोऽधिकार || १६ | इति श्री शातिनाथचरित्र समाप्तम् । शुम भवतु || मानोत्तमे माने वैशासेमामे शुक्लतियों पपट्ट्या भृगुवामरे अय ग्रथा नमान । निखितमिद पुस्तक मिश्रो नामक गुलजारीलाल शर्मणा ॥ मवत् १६७१ ।। आर्य्या बनाई । श्लोक -- मिटे निवामनशाली गुलजारीलाल नामको हि मिश्रश्च ॥ विललेख पुस्तक यत् पातु सदा तच्छिवश्रमान् लोके ॥ १ ॥ रि० ग्वालियर जि० मिड । एलोक संख्या ५६७२ सवत् १९२१ की लिखी हुई प्रति से यह नकल की गई है । द्रष्टव्य- (१) जि० र० को०, पृ० ३८० ॥ (२) दि० जि० म० २०, पृ० २४ । (३) Catg. of Skt. & Pkt. Ms., P. 694
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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