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________________ Opening : t Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramisha & Hindi Manuscripts (Purina, Carita, Kathā ) ८७. पांडवपुराण Closing : Colophon : Opening Closing : Colophon सेवत सत सुरराय स्वय सिद्धारथ सरवसनय प्रमान सिवसिद्धमय । ससिद्ध जय ॥ ३५ को पुष्ट शरीर को, करके सरसाहार । को गुनता सो युद्ध में जो भाजं भयधार ॥ नही है । ८८. पार्श्वपुराण पर्णाविवि गिरि पामहो सिवउरि वाराहो, विहुणिय पामहो गुणभरिऊ | भविय कारण दुयेनिवारणु, पुणु आहास मिठहु चरिऊ। मच्छरमय हीणउ मत्यपवीणर, पडियमणुणदउ सुचिरू । परगुणग्रहणाय वयणिय माय जिणपेय पयम्ह णविय सिरु || इथ सिरि पासणाहपुराणं आयम अत्थस्स अस्थिसुणिहाणे सिरि पडिय रहधू विरइए सिरि महाभन्वसेऊ साहुणाम किए सिरि पाराजिण पचकल्लाणवण्णणो तहेव दायार वस णिद्द सो गाम सत्तमो सधी परिच्छेओ सम्मत्तो । सधि । ७ । इति श्री पार्श्वनाथपुराण' समाप्तम् । अथ सवत्सरेऽस्मिन् श्रीविक्रमादित्यराज्ये १५४९ वर्षे चैत्रसुदि ११ शुक्रवासरे पुनर्वसु नक्षत्रे शुभनामा योगे श्री हिसार पेरौंजा कोटे श्री महावीरचत्यालये सुलितान श्री साहसिकदरराज्यप्रवर्तमाने श्री काष्ठास माथुरान्वये पुष्करगणे त्रयोदशप्रकारचरित्रालका राल - कृत वाह्याभ्यन्तर परिग्रहस मित्रह (?) समर्था. भट्टारक श्री षेमकीतिदेवा. तत्पट्टे त्रिकालागत श्राद्धवृदविहितपदसेवा भट्टारक श्री हेमकीर्तिदेवा तत्पट्टे कुवलयविकासनैकचन्द्रो भट्टारक श्री कुमारसेन - देवा तत्पट्टे प्रतिष्ठाचार्य श्री नेमचद्रदेवा, तदाम्नाये अग्रेकान्वये गोहलगोत्रे आशीवाल सराफ - देवशास्त्रगुरु चरणारविंदचचरीकोपम पचाणुव्रत प्रतिपालका समा परमश्रावकसाघु मइणाखपः चादपाही । तृतीयपुत्र. जिनपूजापुरदरसाधु दूल्लणु भार्या जे बूहि तस्यागजा प्रथम पुत्रमयणरूप व्रत दूथितज कल्पवृक्षान् साध वणुभार्यावाही 1
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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