________________
श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shii Devakumnt Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah
Closing : निश पु कथा पूरन भई, पढे सुनित सोय ।
सुख पावे जे नर त्रिया, पाप नाश तिन होय ॥ Colophon : इति निश भोजनत्याग कथा समाप्ता । शुभ भवतु ।
मिति अगहण वदी ७ सम्वत् १९६१ ।
७७. निशि भोजन कथा Opening • देखे, क्र० ७६ । Closing : देखे, क्र० ७६ । Colophon : इति श्री निशिभोजन कथा समाप्तम् ।
महावीर वदी -सदा, रत्नतीन दातार । निजगुण हमे सु दो अवे, अपनो जानि हितकार ।। श्री शुभ सवत् १९५५ मिति कुमार कृष्ण ८ वार वृहस्पति ।
७८. निर्दोष सप्तमी कथा Opening : श्री जिन चरणकमल अनुसरू, सदगुरु की मैं सेवा करूं।
निरदोष सातमनी कथा, बोलू जिन आगम छै यथा ।। •Closing . ये व्रत जे नरनारि कर, ते जन भवसागर उतरी।
अजर अमर पद अविचल लहैं, ब्रह्म ज्ञान सागर इम कहैं । Colophon . इति श्री निर्दोष सप्तमी व्रत कथा समाप्तम् ।
७६. पद्मनन्दिचरित टिप्पण Opening : शकर वरदातार जिणं नत्वा स्तुत सुर।
कुर्वे पचरित्रस्य टिप्पण गुरुदेशनात् ।। Closing : . लाढ वागडि श्रीप्रवचन सेन पडिता पद्मचरितस्य कर्णोवला
.त्कारगण श्री श्रीनंद्याचार्य सत् शिष्येण श्री चन्द्रमुनिना श्रीमद्विक्रमादित्यमवत्सरे सप्तासीत्यधिकवर्ष सहस्त्र श्रीमद्धराया श्रीमतो
राजे भीजदेवस्य पद्मचरिते। Colophon: इति पद्मचरित्रे पर्व टिप्पण सम्पूर्णम् । एवमिद पद्मचरित
टिप्पण श्री चन्द्रमुनिकृत समाप्तम् । शुभ भवतु सवत् १८८४ वर्षे पौषमासे - कृष्णपक्षे , पचम रविवासरे श्रीमूलसघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कु दकु दाचार्यान्वये आम्नाये ।