________________
२०.
श्री जैनसिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jarn Siddhant Bhavan, Airah
५.२. जम्बूस्वामी चरित्र Opening : - उद्दीपीकृतपरमानदाद्यात्मचतुष्टय च वृद्धया।
निगदति यस्य गर्भाधु त्सवमिहत स्तुवे वीरम् ॥ Closing : . . जवूस्वामीजिनाधीशो भूयान्मगलसिद्धये ।
भवता भुवि भो भव्या श्री वीरातिमकेवली ॥
Colcphon : ' इति श्री जबूस्वामिचरित्र भगवन्छीपश्चिमतीर्यकरोपदेशा
नुसरित स्याद्वादानवद्यगद्यपद्य विद्याविशारद पडित , राजमल्लविरचिते
साधुपासात्मजसाधुटोडरसमभ्यत्थिते मुनि श्री विद्यु च्चर सर्वार्य सिद्धि___गमनवर्णनो नाम त्रयोदशम पर्व। . . शब्दापूरर्थवच्छास्त्र यथेद याति पूर्णताम् ।
तथा कल्याणमालाभि' वद्धता साधु टोडर ॥
अथ सवतसरेऽमिन् श्री नृपविक्रमादित्यगताब्द सवत् १६३२ ' वर्षे चैत्रसुदी ८ वासरे । 'परम श्रावकसाधु श्री टोडर जबूस्वा। “मिचरित्र कारापित लिखापित च कर्मक्षयनिमित्तम् । लिखित गगा
दासेन।। - ।। . . . . . यह प्रतिलिपि स्व०, बा० देवकुमार जी द्वारा स्थापित श्री - जैनसिद्धान्त भवन आरा, मे सग्रहार्थ श्री वाबू निर्मलकुमार जी के मत्रित्व काल मे श्रीप० के भुजवली शास्त्री की अन्यक्षता में बा० पन्नालाल जी के द्वारा देहली से- उपरोक्त प्रति मगाकर तैयार की गई। शुभ मिति अषाढ कृष्णा १२ वीर स० २४६१ वि० स० १९६२ । हस्ताक्षर रोशनलाल लेखक'।
द्रष्टव्य-जि० २० को०, पृ० १३२ ॥
५३ जम्बूस्वामो कथा - Opening :
प्रथम पच परमेष्ठी नाऊँ। दूज्यौ सरस्वती नमू पाऊ॥ तीजै गुरु चरने अनुशरो।
होय सिद्धि कवि तु विस्तरो ।। Closing i
तिन यह कथा करी मनलाई । वाच्य हर्ष उपज सुखदाई ।। पढे सुनै जो , मनुवै कोई । मनवाक्षित फल पावे सोई ।।