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________________ .१२ श्री जैनसिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Davek imar Join Oriental Library Jain Siddhant Bhavun, Arrah (३) रा० सू०, पृ० २१० । (४) जि० र० को०, पृ०१६३ । (5) Catg. of Skt. & Pkt Ms. Page 656 (6) Cat. of Skt. Ms. P.302 ३१. धर्मशर्माभ्युदय सटीक Opening जयति जगति मोहध्वातविध्वसदीप', स्फुरित कनकमूत्तिर्ध्यान लीनो जिनेन्द्र. । यदुपरि परिकीर्णस्कधदेशाजटाली, विगलितसरलात कज्जलामाविति ॥ Closing 1 "... "तदनुयायी तत्वातत्सर सन् कृतनिर्वाणक-याणम होत्सवोपाजितपुण्यराशिनिज निज स्थान चनुणिकायामरसधातो जगाम । Colophon . इति श्री मन्म इलाचार्य श्री ललितकीर्तिशिप्य पडित श्री यश. कीतिविरचिताया नदेहध्वातदीपिकाया 'धर्मशर्माभ्युदयटीकाया एकविंशतिम सर्ग। स्वरितश्री सवत् १६५२ वर्षे भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे चतुर्थ्यातिथौ गुरुवासरे अबावती वास्तव्ये राजाधिराज श्रीमानसिंह जी राज्ये श्री नेमिनापचैत्यालये श्री मूलमधे नद्याम्नाये वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुदकुदान्वये भट्टारकश्रीचन्द्रकीति तदाम्नाये खडेलवालान्वये गोधागोत्रे सा पपारण भार्या पु हसिरि तत् पुत्री द्वौ प्रथम सा नूना द्वितीय सा, पूना नूना पु सा. वीरदास भार्या ल्होकन चादणदे सिगारदे एताभिमिलित्वा धर्मणर्माभ्युदयकाव्यश्च टीका लिखाय्य आचार्य लक्ष्मी चन्द्रायप्रदत्ता। शुभमिति ज्येप्ठशुक्ला द्वितीया शुक्रवार विक्रम सम्वत १९९० को यह पुस्तक लिखकर पूर्ण हुई, जिसे आरा निवासी स्वर्गीय बाबू देवकुमार द्वारा स्थापित श्री जैनसिद्धान्त भवन में सग्रह करने के लिए प० के० भुजवली जी शास्त्री अध्यक्ष के द्वारा वाव निर्मल कुमार जी मत्री जैन सिद्धान्त भवन ने लिखवाया । 'रोशनलाल ने लिखा।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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