SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Catalogue of Sanshrit, Prakrit, Apabhreinsha & Hindi Manuscripts ( Purana Canta, Katha ) २२, चारुदत्तचरित्र Opening ' चरण नमो महावीके, हरन सर्व दुखदद । तरन जु तारण जगत को, करन महासुख कद ।। Closing : चारदत्त सपति विभो अहिमिदर पद कहि वरन । इस भाति चरित वाची सुनौ सक्ल सग मगलकरण । Colcphon: इति श्री चारदत्त चरित्र गण भारामल्ल विरचित सम्पू र्णम् । लिखित गुलजारीलाल निवासी स्तमगढ के जैनी पद्मावती पुरवार रोज वृहस्पतिवार सवत् १९६० मिती चैत्र शुक्ल ५ पचमी शुभम् । २३ चेतन चरित्र Oper ing . श्रीजिनचरण प्रणामकरि, भविक भगति उरआनि । चेतन अरु का करमको, कही चरित्र वखानि ।। Closing मवत सत्रहमैवनीम मे, जेष्ठ सप्तमी आदि । श्री गुरुवार सुहावनौ, रचना कही अनादि । Colophon ' इति श्री चेतनकर्मचरित्र मपूर्णम् । मिति श्रावण सुदी १३ सवत् १९५८ । Opening: Closing : २४, चेतनत्तरित्र नाटक पारस चरन सरोज रज, सरस सुधामसार । जेहि सेवत जडता नस, सज सुबुद्धि सुखकार ॥१॥ पच परमपद को नमो, सर्वसिद्वि दातार । चेतन कर्मचत्रि को कह कह निनार ॥२॥ आप विराजो महल आपने समर भूमि जाता है, जितने भाये सवी को बटी करके लाता हूँ। खुशी मनावे जिनवर ध्यावो समर जीति में आता हूँ, मै भी आपका राजवीर गस वीर कहलाता हूँ। अपने मालिक के दुश्मन को सूरवीर यदि पाता है, नो मारे दिन निरस्य गज के गम खाता है ।। इति चेतनकरित्र नाटक 7 पू।। Colophon:
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy