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( १५ ) सा० ॥ ५ ॥ तूंही कृपाल दयाल तू साहेब । शिवदायक तूं जगनाथ ॥ निश्चल ध्यान करे तुज ओलख ॥ से मिले तुज संघात ॥ सा० ॥ ६ ॥ अंतरजामी आम उजागर ॥ में तुम शरणो लौध॥ संवत उगणौसैभाद्रवी पुनम वंछितकार्य सिद्ध ॥ सा०॥ ७ ॥
- अनंत जिन स्तवन ।
(पायो युगराजपद मुनि एदेशी ) अनंतनाम जिन चउदमारे ॥ द्रव्य चोथे गुणठांण भलांजी काई द्रव्य० ॥ भावे जिन हुवै तेरमेरे ॥ दूतले द्रव्य जिन जाण ॥ भलाजी कांई इतले द्रव्य जिन जाण ॥ पायो पद जिनराज रे ॥ शुद्घ ध्यान निरमल ध्याय ॥ भलां० पायोपद ॥ १॥ जिन चक्री सुर जुगलियारे ॥ वासूदेव बलदेव भलां० बा० ॥ ऐपञ्चम गुण पावै नहोरे ॥ ए रौत अनादि स्वमेव भलां. ए. पा. ॥२॥ संयम लौधो तिण समैरे ॥ आया सातमें गुणठाण भला० आ० ॥ अंतर मुहतं तिहार होरे ॥ छठे बहुस्थिति जाण भलां० छ० ॥ पा० ॥ ३ ॥ आठमा यौ दोय श्रेणौछरे ॥ उपशम खपक पिछाण भला० उ० उपशम जाम दूग्यारमैरे ॥ मोह दबावतो जाण भलां० मो० ॥पा०॥४॥ श्रेणी उपशम जिन ना लहरे ॥ खपकश्रेणी धर खंत भ० ख • चारित्रमोह खपावतार ।।