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( २३० ) दिक मुनि भगोरे दिलरो हेम दातारहो लाल ॥१६॥ मु० घोर ब्रह्म मुनि हेमनोरे स्यं कहिये बहु बारहो लाल अखिल ब्रत उचरङ्ग सुंरे पाल्यो अधिक उदारहो लाल ॥ १७॥ इर्या धुन अति ओपतिरे जाणे चाल्यो गजराजहो लाल गुण मुरत गमती घोरे प्रत्यन भव दधि पाजहो लाल ॥ १८ ॥ मु० मो सं उपकार कियो घणोरे कयो कठा लग जायहो लाल निश दिन तुझ गुण संभरे बस रह्या मन मांयहो लाल ॥ १६ ॥ सुपने में सूरत खामनौरे पेखत पामें प्रेमहो लाल याद कियां हियो हुलसरे कहणी भावे कमहो लाल ॥ २० ॥ मु. हुतो विन्दु समान थो रे तुम कियो सिन्ध समानहो लाल तुम गुणा कव हुन विममरे निश दिन धरूं तुझ ध्यानहो लाल ॥ २१ ॥ साचा परिश ये सहौरे करदेवो पाप सरिसही लाल विरह तुमागे दोहिलोरे जागा रहा जगदीशही लान्त ॥ २२ ॥ मु. जीत तणी जय थे करो विद्यादिक विस्तारही लाल निपुग कियो सतीदास नेरे वलि अवर संत अधिकार हो लाल। २३ ॥ वाम गुणाग सागरे किम कहिये मुख एकहो लाल उडी तुझ मालोचनार वाम तुम विवेकहो लाल ॥२४॥ म. अखंड आचार्य भागन्चार, से पाली एकाधारहो लाल मान मेट मन वश कियोरे