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________________ ( २१६ ) छेदन वेदन नत्र वेदना, ते खाय अनन्ती मार हो म. ॥ मा० ।। २३ ।। जो देवता हासौ आगमिया कोल में, जे द्रव्य छै देवता पिछाण हो भ० भवनपति व्यतर ज्योतिषी विमाणीया, ते भावे तो देवता जाण हो भ० ॥ भा० ॥२४॥ नारको आदि चौबीस डंडक मझ, तिहां नौव उपजे आय हो भ० ते भावे तो कहौज ब्रते तेहवा, जोवी सूत्र माहि हो भ० ॥ भा० ॥ २५ ॥ अणघड़िया रूपा ने द्रव्ये रुपया कह्यो, तिण रो घड़ आकार तेह हो भ० पछै उपर सिक्को दियो चलग हुवै जहवा, जव भावे रुपया एह होय हो भ० ॥ भा० ॥ २६ ॥ सूत पूणो ने द्रव्ये कपड़ो काहै, मुगा विन तेहनो नाम हो भ० मावे तो कपड़ो कहौज वणिया पळे, ते आवे पहरण के काम हो भ० ॥ भा० ॥ २७॥ इत्यादिक साव निपा अनेक छ, ते पृरा केस कहाय हो स० अने अनुसार बुधवंत समझ ने. ओलख लीजो न्याय हो भ० ॥ भा० ॥२८॥ ॥ दोहा ।। दुनियां मे सानप घगो. ते कही कठां लग जाय । पर्य अनर्घ धर्म कारणे, हण रया जीव छ काय ॥१॥ अर्थ हगा ते पाठां कर गा. आतम न्यात घर परवार । मित्र न्याती ने मृत जक्ष. यांग घणो को विस्तार ॥२॥
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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