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गुण विना थापना भगवान री छ, ते देखीने जाण लेणो आकार। पिण धर्म नहौं तिणमें शीश नमाया, तरगा तारण मत जाणो लिगार ॥ था० ॥५५॥ भगवंत रो आकार सर्व जीव हुवा छ, अनन्त अनन्तौ वार । मिण गुण विना नाम भगवान रा स्यूं, किणरो हो न हुवा दौसे उधार ॥ था० ॥ ५६ ॥ गुण बिन आकार भगवान ग सं, निश्चय नहौं टले आतम दोष। जो पाकार वाद्यां सदगत होय, तो सकला जीव जाय विराजता मोक्ष ॥ था० ॥ ५७॥ गुण बिन आकार भगवंत रा सं , निश्चय गरज सरै नहीं कायो। गरज सरे नहीं अगवंत ने बांदे, संसिा हुवै तो सूत्र में जोया ॥ था० ॥ ५८ ॥ गुण विन आकार माने तिणने, वाली में स्कूल न दोसे बंध। फिरती भाषा बोले अजानी, 'ते रह्या होय मतवाला ज्य' अंध ॥ था. ॥ ५६ ॥ गुण करनें अरिहंत भगवंत छै, गुण करने के ऋषिश्वर साधा। त्यांरा आकार सं गुगा न्यारा नहीं के, त्यांने वाद्यां सँ पामे परम समाधी ॥ था० ॥ ६ ॥ ने गा विन आकार घाप राखै ते, कहवता नावण यावे कामा। भ्रम भुलाया आकार देखने, वलि सुण मया ने आकार रो नामा ॥ घा० ॥२॥ केद्रक भाकार कहिवारा छै, गुण निपन पावे बादण रे कामो। ते