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॥ दोहा ॥ गुण विना नाम दिया लोकीक में, ने प्रत्यक्ष लीनो देख । घोड़ासो परगट करू, ते सुणने मत करज्यो द्वेष ।
॥ ढाल दूजी ॥
( चौपई नौ देशी) नाम दिया है राधाकिशन। सेवता जावे सातों विसन ॥ १ ॥ नाम दिया है गोविंदराय। फिरै चगवै पराई गाय ॥ बाई रो नाम दिया छै लाछ । पिण मागी न मिले कुलड़ी छाछ ॥ २ ॥ सासू कहै म्हारी कपूर दे वह । सांभल नाम वालावे सह ॥ नाम नाम दियो कस्तूरी नास। माहे नहीं हौंग री वास ॥३१ टॅट घणौ न वांका निहाले। दर्भिच पडिया देश दुकालें ॥ नाम दियो छ जगत पाल । पिण सघलां पहली वेच्या वाल ॥ ४ ॥ किणहीक नाम साना दिया। साथ विना एकलो चालियो ॥ घणो दरिद्र बहेन लार । नाउ ने कदे उठे न धार ॥ ५ ॥ वाई रो नाम दियो कुशाल । पिगा मिटियो नहीं मोग रो साल। कुढ़ कुढ़ में दिन पूग करे । कूवे वाबड़ी पड़ी मरे ॥ ६ ॥ नाम दियो छे धर्माशाह । परभव नी नहीं परवाइ। कूड़ कपट लंपट चित
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