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( १७७ )
सस्थ
मुसलादि
सावज्ज
जोगरा
पच्चखाण
सावध
जोगका पचखाण
सस्त्र मूसलादिक इत्यादि मच्चखाण, कने द्रवाराख्या जिया उपरान्त मंच Tea द्वार सेउं नहीं सेवाऊं नहीं मनसा बायसा कायसा द्रव्यथौ एहिज द्रव्य क्षेत्रघो सर्व क्षेत्रांमें कालकौ (दिवस ) अहो रात्रि प्रमाण भाव थको राग द्वेष रहित उपयोग सहित गुणथको संबर निर्जरा एहवा म्हांरे इग्यारमां व्रत विषे जे कोई प्रतिचार दोष लागो होवे ते आलोउ ।
अपड़िहा होय
पड़िलेहा नहीं होय
सेज्जा संथारो
सोवाकी जगां विसतरी
होय १ अप्रमार्ज्या नहीं प्रमाय
पड़लेहना
फरी
उच्चारपासवगरौ भूमिका अपड़िलेह होय दुपड़ि
नहीं पड़िलेही होय
अथवा
टुपड़िलेहा
आच्छीतरह नहीं
होय दुप्रमार्ज्या होय २ आच्छीतरह नहीं प्रमार्ज्या
छोटी बड़ी नीतको जमीन लेही होय ३ अप्रमार्जी होय दुप्रमार्जी होय ४ पोषहमें निन्दा विकथा कषाय प्रमादकरी होय ५
तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
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॥ इति ॥
बार अतिथि संविभाग व्रत पांचां बोलांकरी पोलखीने द्रव्यथकौ ।