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( ८ ) ध्यायने ॥ पाया केवल सोयर दीन दयाल ती दिशा || कहणी नावे कोय ॥ पद्म० ॥ २ ॥ सम दम उपशम रस भरी || प्रभु आपरी वाणि | त्रिभुवन तिलक तु ही
सही || तु हो जनक समान ॥
मद्म० ॥ ३ ॥ तु प्रभु
कल्पतरु समो ॥ तु' चिन्तामणि जोय २ ॥ समरण करतां श्रपरो ॥ मन वंछित होय || पद्म• ॥ ४ ॥ सुखदायक सह जग भयौ | तु ही दोन दयाल २ शरणे पायो तुज साहिबा । तु ही परम कृपाल || पद्म० ॥ ५ ॥ गुणगातां मन गहगहे | सुख संपति नाग २ | विघ्न मिटै समरण कियां ॥ पामै परम कल्याण || पद्म० ॥ ६ ॥ संवत उगणी सैनें भाद्रवे ॥ सुदि बार स देख || पद्म प्रभु रय्या लाडनूं ॥ हुआ हर्ष विशेष || पद्म० ॥ ७ ॥
श्री सुपास जिनस्नवन ।
( कृपण दीन अनाथए एदेशी )
मुपास सातमां निगंद ए ॥ ज्यांने सेवे सुर नर हृदए । सेवक पूरण आशए ॥ भजिये नित्य खामि|| मुपासर || १ || एकणी || जन प्रतिवोधण कामए ॥ प्रभु वागरे वाण असाम || संसार स्यूँ हुवै उदास ॥ भ० ॥ २ ॥ पामै काम भोगथौ उड गए | वलि उपने