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कट्टो दिशि व्रत पांचां बालां ओलखीने द्रव्य थकी तो उंची दिशारो यथा प्रमाण, नौची दिशारो यथा प्रसाण, तिरछौ दिशारी यथा प्रमाण, यां दिशारी प्रमाण कौधो तेह उपरान्त जायकर मंच वासव द्वार सेऊं नहीं सेवा नहीं मनसा बायसा कायसा द्रव्यथको तो एहिज द्रव्य न त्रयी सर्व क्षेत्रां सें कालघकी जाव जीवलग भावथको राग द्वेष रहित उपयोग सहित, गुणथको संवर निर्जरा एहवा मांहरे छट्ठा व्रत के विषे जे कोई अतिचार दोषलागो हवे ते आलोडं ।
ऊंची दिशारी प्रमाण अतिक्रम्यो होय १ नौची दिशारो प्रमाण अतिक्रम्यो होय २ तिरछी दिशारी प्रमाण अतिक्रम्यो होय ३ एक दिशा घटाई होय एक दिशा बधाई होय ४ पंघ में आघो संदेह सहित चात्यो चलायो होय ५ तस्समिच्छामि दुक्कडौं । ॥ इति ॥
सात उपभोग परिभोग व्रत पांचां वोलांकरी पोल
खोजे, द्रवग्रघको छवीस बोलांकी मर्याद ते कहै है
उलगीयां विहं १ दंतनविहं २ अंग पूलनादि विधि दांतन विधि
फल विहं २
फल विधि
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