________________
अनन्त
सबद रिमोग शिवमयल मरुध मगात सर्व दाण कल्याणकारी গল
अचल सक्वय सव्वाबाह मप्य गागती सिद्धिगई अक्षय अन्यान्याधि फेरु आवे नहीं इसी सिद्धगति नासधेयं ठाणं सपत्तागं नमो जिग्गाणं ॥ इति ॥ नामवाला स्थान प्राप्त हुआ ज्यां जिनेश्वराने
नमस्कार थायो अथ आवस्सही इछामिणं भंते। धावस्सहो इच्छामिणं भंते तुबहिं अभणं अवश्य इच्छू छू में है भगवान तुम्हारी आज्ञासे नायेसमाणे देवमी पडिक्कमणं ठाएमि देवसी
दिवस प्रति क्रमण करूमैं दिवस
संवन्धी जान दर्शन चारित्र तप अतिचार चितवनाथ शान दर्शन चारित तप अतिचार चिन्तयना के
संवन्धी
भरये
करोमि काउमग्ग ।। फ छू में फाजसग ते ध्यान ____अथ इच्छामि ठामि काउसग । इच्छामि ठामि काउसम्ग' नो मे देवसिउ पर इन्छ ठाऊ फाउसग ज्यो में दियसमें मति