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जिनन्दनें जय जय जिन. चन्दा ॥ ए पांकणी ॥ १ ॥ अनुकूल प्रतिकूल सम सही। तप विविध तपिन्दा ।। चेतन तनु भिन्न लेखवी। ध्यान शुक्ल ध्यावंदा ॥ २ ॥ पुद्गल सुख और पेखिया । दुःख हेतु भयाला ॥ विरक्त चित बिगट्यो इसो। जाण्या प्रत्यक्ष. जाला. ॥ ३ ॥ संवेग सरवर झूलतां। उपशम रस लौना ॥ निन्दा स्तुति सुख दुःखे । सम भाव सुचीना ॥ ४ ॥ बांसी चंदन सम पणे । थिर चित जिन ध्याया। इंमतनं सार तजी करी । प्रभु केवल पाया ॥५॥ हु बलिहारी सांहरी वाह वाह जिन राया ॥३॥ उवा दशा किण दिन पावसी । मुझ मन उमाया ॥६॥ उगौसै सुदि भाद्रव दशमी दौतवारं ॥ ऋषभदेव रटवेकरौ। हुो हर्ष अपारं ॥ ७॥ .
श्री अजितजिनस्तवन ।
• (अहो प्रिय तुम घट पाडी एदेशी) अहो प्रभु अजित जिनेश्वर पापरी । ध्याउ ध्यान हमेश हो ॥ महो प्रभु अशरण शरण तुही. सही। मेटण सकल कलेश हो ॥ अहो प्रभु तुम ही दायक शिव पंथना: ॥ १ ॥ अहो प्रभु उपशम रस भरी मापरी। बाणी सरस विशाल हो॥ अहो प्रभु मुगत निसरणी