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SS* जैन-गौरव-स्मृतियां See
जाता यह जैन संस्कृति का ही पुण्य प्रभाव है। पूर्णतया निरामिष रहने वाली ... जाति जैन जाति ही है। ... जैन जाति अहिंसा की भावना से रात्रि भोजन नहीं करती प्रायः जैन लोग सूर्य-छिपने से पहले ही भोजन से निवृत्त हो जाते हैं। रात्रि के समय . भोजन करना जैनियों में निषिद्ध है । इसका कारण यह है रात्रि भोजन कि रात्रि के समय अन्धकार होने से कई छोटे-छोटे जीव . का त्याग दृष्टिगत नहीं होते । वे भोजन की सामग्री पर बैठ जाते हैं -
और भोजन के अन्दर मिल कर पेट में चले जाते हैं। इससे ... उन जीवों की भी हिंसा होती है और खाने वाले को भी अनेक अनर्थों का । अनुभव करना पड़ना है । स्वाथ्य की दृष्टि से भी रात्रि भोजन वर्जनीय है। रात्रि में हृदय और नाभिकमल संकृचित हो जाते हैं अतः भोजन का पचाव अच्छी तरह नहीं हो पता । शरीरशास्त्र के वेत्ता रात्रि भोजन को बल बुद्धि
और आयु का नाश करने वाला बतलाते हैं। महात्मागांधी जीने भी रात्रि में भोजन करना अच्छा नहीं समझा था । लगभग ४० वर्ष से जीवनपर्यन रात्रि-.. भोजन के त्याग के व्रत को गांधी जी बड़ी दृढता से पालन करते रहे। यूरोप: गये तब भी उन्होंने रात्रिभोजन नहीं किया । जैनधर्म का रात्रि भोजन न करने का नियम वैज्ञानिक आध्यात्यिक और स्वास्थय की दृष्टि को लिये हुए है । जैन लोग प्रायः रात्रि में भोजन नहीं करते। यह नियम भी उनकी अहिंसा की । भावना का पोषण और परिचायक है। .
जैन संस्कृति में दया और दान का बहुत अधिक महत्त्व है। अहिंसा की भावना को व्यावहारिक एवं सामाजिक रूप देने के लिए दया और दान
की आवश्यकता रहनी है। इसलिये जैन समाज में इन दोनों . दया और दान का अत्यधिक प्रचलन है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा
- सकता है जैन दया और दान के अप्रतिम उपासक हैं । संसार के दुखो को मिटाने के लिए, दुखियों के दुख को दूर करने के लिच, मूकपशुओं की रक्षा और हिफाजत के लिए, गरीबों की सहायना के लिए और . पीड़ितों की पीड़ा निवारण करने के लिए जैन लोग सव से अधिक प्रयत्न करते है। जीवदयाकी ओर जैनियों की स्वाभाविक अभिरुचि है इसलिए अनेक जीवदया प्रचारक संस्थाएँ जैनियों की ओर से संचालित होती हैं। भारत में होने