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★ जैन-गौरव-स्मृतियां.*S
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- पर आये थे। जैन कथा विभाग के अनुसार पार्श्वनाथ के सम्प्रदाय के बुद्ध । कीर्ति नाम के साधु ने सरयू के तटपर तप करते हुए एक मरी हुई मछली को देखी और निर्जीव मानकर उसे खाने में कोई दोष नहीं है यह समझकर वह उसे खा गया इससे भ्रष्ट होकर उसने बौद्ध धर्म चलाया, ऐसा कहा जाता हैं। बौद्ध यह दावा करते हैं कि बौद्ध ग्रन्थों का आधार लेकर जैनों ने अपना धर्म स्थापित किया है । धार्मिक प्रतिद्वन्द्विता के युग में ऐसी २ कल्पनाएँ पैदा हों, यह कोई अचरज की बात नहीं है, ऐसा होना स्वाभाविक है।
गत शताब्दी के कतिपय संशोधकों का ऐसा मत था कि जैनधर्म बौद्धधर्म की सम्प्रदाय है । जब बौद्धधर्म की अवनति होने लगी तव जैनधर्म की उत्पत्ति हुई"। ऐसा विल्सन और वेन्फी की मान्यता थी। क्रि. लासन । अदि इसे ई. स. १-२ शताब्दी में और वेवर वौद्धधर्म के प्रारम्भ की शताब्दी में इसे उत्पन्न हुआ मानते थे। इस प्रकार इन दोनों धर्मों के पौर्वापर्य के सम्बन्ध में और एक दूसरे की शाखा मानने के विषय में जो विभिन्न मान्याताएँ थी वे हर्मन जेकोब के अन्वेषण और गवेषणापूर्ण मन्तव्य से दर होगई। हर्मन जेकोबी ने पुष्ट प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि जैनधर्म एक सर्वाथा स्वतंत्र और मौलिक धर्म है। वह किसी, वौद्ध या वेधर्म की शाखा नहीं है । अब प्रायः सब ऐतिहासिक पुरातत्त्ववेत्ता इस बात से सहमत है कि -"जैनधर्म व बौद्धधर्म दो अलग २ स्वतंत्र धर्म हैं। जैनधर्म, बौद्धधर्म से प्राचीन है । बौद्धधर्म का साम्य जैनधर्म के साथ अधिक है।" ... यह सत्य है कि जैनधर्म और बौद्धधर्म की कई बातों में समानता है।' दोनों वेद विरोधी है । दोनों ने ब्राह्मण गुरुओं की सत्ता और याज्ञिक कर्म .. काण्डों का विरोध किया था। दोनों ने अहिंसा, मैत्री और साम्य को महत्त्व दिया । दोनों ने जगत् कर्ता के रूप में ईश्वर को अस्वीकार किया। दोनों ने अपने पूज्य पुरूषों को "अर्हत् बुद्ध जिन" नाम दिवे। दोनों के साहित्य में नाम प्रायः समान ही आते हैं। कर्म सिद्धान्त को भी किसी सीमा तक दोनों स्वीकार करते हैं। इतनी समानता होने के साथ ही साथ इन दोनों धर्मों में महत्त्व पूर्ण मौलिक भिन्नता है। . . . .