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________________ : जैन - गौरव स्मृतियां 冬冬冬冬冬冬持與合作 编编中华华编办冬冬华社北京大学的经 जैतारण ( मारवाड़ ) निवासी सेठ अभयराजजी सकलेचा के ४ पुत्र हैं । श्री पारसमलजी (जन्म सं० १९८३ ) नेमीचन्दजी, शान्तिलालजी तथा ऋषभचन्द्रजी श्री पारसमलजी व नेमीचन्दजी विचार शील उत्साही मिलनसार नवयुवक है। श्री पारसमलजी बी. ए. बड़े उदार हैं। पिताजी की स्मृति में जैतारागण गौशाल में १६०१ दान दिया है । 'अभयराज पारसमलजी' के नाम से बैंकिंग व साहूकारी लेन देन होता है। डालमिया सिमेण्ट वर्क्स के एजेण्ट भी हैं । * सेठ ताराचंदजी गेलडा, मद्रास आपका मूल निवास स्थान कुचेरा ( मारवाड़ ) हैं । आपके पूर्वज सेठ अमर चन्दजी करीब १५० वर्ष पूर्व मद्रास आये और वैकिंग का व्यवसाय जमाया संवत् १६५२ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके ३ पुत्र हुए सेठ पूनमचन्द्रजी, हीराचन्दजी ओर रामबक्सजी | सेठ पूनम चन्दजी बडे ही उदार हृदय और धार्मिक वृत्ति के सज्जन थे । सं० १६६३ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके ३ पुत्र हु / श्री ताराचन्दजी, किशनलालजी. और इन्द्रचन्दजी | सेठ ताराचन्दजी- आपका जन्म सं० १९४० का है । भारत वर्षीय स्थानकवासी जैन समाज के आगेवान नेताओं में आपका नाम है । धार्मिक व सामाजिक कार्यों में तन मन धन से सक्रिय सहयोग देते हैं । मद्रास स्थानकवासी जैन समाज के ती आप प्रधान कर्मठ कार्यकर्त्ता व सलाहकार हैं । कई संस्थाए आपही के प्रयत्न से जन्मी, फत्ती और वर्तमान में अच्छा काम कर रही हैं । अ० भाव स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स के १७ वें मद्रास आधिवेशन के आप स्वागताध्यक्ष थे । श्री जैन हिते . कछु श्रावक मंडल रतलाम के कई वर्षों तक सभापति रहे हैं और वर्तमान में भी प्रधान कार्यकर्ता हैं । पूज्य जैन साहित्य प्रचार की तरफ आपका विशेष लक्ष्य है । आपने स्व० जेनाचार्य श्री जवाहिरलालजी म० रचित ग्रन्थ अपनी ओर से छपवा कर मूल्य या लागत मूल्य में समाज को दिये हैं। बड़े दानवीर भी हैं। कई जैन संस्थाओं के आप सहायक हैं। समाज सुधार क्षेत्र में भी आपकी सेवाएं बड़ी प्रशंसनीय हैं। अ० भा० ओसवाल महा सम्मेलन के उप सभापति भी आप हैं । बड़े निर्मिक और स्पष्ट सत्यवादी हैं । रहन वडा सादा हैं । शुद्ध खदर का ही प्रयोग करते हैं। आपके ३. पुत्र हैं। श्री भागचंदजी नेमीचंदजी और खुशालचंदजी । श्री भागचंदजी भी पिता श्री के अनुरूप कर्मठ समाज सेवी हैं ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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