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जैन-गौरव-स्मृतियां र अच्छे बुरे काम के फल हैं, नहीं हैं, है भी और नहीं भी, न हैं और न
यह संजय वेलढिपुत्त परिव्राजक थे। इनका यह मत अंनिश्चित वाद के रूप में वौद्धग्रन्थों में वर्णित है । जैन ग्रन्थों में इसे अज्ञानवाद माना गया. है। सूत्रकृताङ्गः सूत्र में इस अज्ञानवाद का वर्णन किया गया है। यह अज्ञानएक ओर इन्द्रियातीत वस्तुओं की व्यर्थ चर्चाओं में से निकल कर मनुष्य जीवन सम्बन्धी वातों में तन्मय करने के लिए उपयोगी हो सकता है वही दूसरी और मानव-समाज की तत्त्वजिज्ञासा, आचार प्रणालिका में वाधक हो सकता है। इसलिए म० महावीर ने इस वाद का स्याद्वाद की विशिष्ट प्रणालिका द्वारा संशोधन किया. और -अज्ञानवाद का निराकरकरण किया। . इस प्रकार बुद्ध-को छोड़कर उक्त पांच मुख्य मतस्थापक भगवान महावीर के . समय में अपने २ मत का प्रचार करते रहे थे। इन सबके होते हुए भी उस . समय में सफल धार्मिक क्रान्ति करने वाले दो ही महापुरुष विशेष रूप से .. प्रसिद्ध हुए, श्री महावीर और श्री बुद्ध ! . . ... ... ... ... ..
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" आज से पच्चीस शताब्दी पूर्व भारत वर्ष के. धार्मिक क्षेत्र में एक प्रबल क्रान्ति की लहर उठी। उसने तत्कालीन समस्त भारत को त्वरित गति से प्रभावित किया । धर्मों के स्वरूप और वाह्य क्रियाकाण्डों में महत्व का परि"वर्तन हुआ। इस क्रान्ति को जन्म देने वाले दो युग प्रवर्तक महापुरुष हुए।' प्रथम श्री महावीर और दूसरे श्री गौतम बुद्ध । दोनों महापुरुषों के सामने " समान लक्ष्य था और दोनों को एक सी परिस्थिति के बीच अपना कार्य आरम्भ करना पड़ा। इन दोनों महाविभूतियों ने उस काल के धार्मिक क्षेत्र में आये हुए विकारी तत्वों को दूर करने के लिए जो श्रम उठाया, 'धों को जो वैज्ञानिक रूप दिया जो लोक कल्याण के कार्य किये इसके लिए सारा संसार इनका ऋणी है।
भगवान् महावीर और बुद्ध के समय में वेदविहित हिंसा आदि क्रिया काण्डों ने ही धर्म का रूप ले रखा था। शुद्रों और स्त्रियों को अतिहीन समझा जाता था। उन्हें कोई धार्मिक अधिकार नहीं था। यज्ञों के द्वारा देव कृपा प्राप्त "