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________________ |. Ma"-: . ७५४ * जैन-गौरव-स्मृतियां लालजी ने भी शिक्षा इण्टर तक की है और व्यापार में सक्रियता से भाग लेते हैं। आप चारों भाइयों में घनिष्ठ प्रेम है। आप वेताल पैठ पूना "जवाहरमल जी सुखराजजी" के नाम से वर्तनों का बड़ाभारी व्यापार करते है । विदेशों से थोक वन्द व्यापार एजेन्सी के रूप में होता है। इसी फर्म की शाखा से कपड़े का थोक बन्द व्यापार श्री सेठ सुखराजजी के पुत्र सेठ सम्पतराजजी ललवाणी के हाथों से होता है। श्री सम्पतराजजी धार्मिक विचारों के तथा साधुओं एवं मुनियों के पूर्ण भक्त है। *श्री सेठ पूनमचन्दजोगांधी, कोल्हापुर श्वेताम्बर आम्नाय के उपासक श्री सेठ पूनमचन्दजी का जन्म १९६४ में गुड़ा (सिरोही ) में हुआ । आपके पूज्य पिताजी दोलाजी पूना जिले में मोती का व्यापार. करते थे परन्तु संह १९७४ में कोल्हापुर में आकर बस गये एवं यहीं पर अपना व्यवसाय चालू किया। . श्री पूनमचन्दजी धर्म निष्ट श्रावक हैं धार्मिक पूजा पाठ एवं शास्त्रवाचन. में आप रत रहते हैं। आप कुम्भोज गिरी तीर्थ कमेटी व श्री आत्मानन्द जैन सेवा के मन्त्री पर सुशोभित हैं। कुम्भोजगगिरी तीर्थ के जीणोंद्वार में आपका प्रमुख हाथ रहा है । आपके श्री ज्ञानमलजी, वेडरमलजी, एवं सुदर्शनजी नामक तीन पुत्र हैं। : सराफा बाजार में श्री वृद्धिचन्दजी पूनमचन्दजी के नाम आपकी फर्म पर सर्राफी का काम होता है। ★श्री सेठ ज्ञानमलजी अमरचन्दजी, कोल्हापुर फुगणी (सिरोही ) निवासी सेठ नाथाजी और मोतीजी सहोदर बन्धुथी। आप दोनों का प्रेम आदर्श रूप था । श्री नाथाजी के पुत्र ज्ञानमलजी हैं एवं मोतीजी के अमरचन्दजी नामक पुत्र हैं। सं. १६६५ में आप लोग कोल्हापुर आये एवं अपनी फर्म स्थापित कर सर्राफी एवं सूती मालका थोक वन्ध व्यवसाय प्रारम्भ किया । आप बन्धुओं ने फूगणी में कलश चढाये जिसमें उदारता पूर्वक धार्मिक कार्यों के लिए खर्च किया और समय २ पर करते रहते हैं। कुम्भोज गिरी तीर्थ । पुर कलश स्थापित कर उदारता दिखलाई। आप श्वे. मंदिर अम्नायी है। . ' . . में स।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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