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________________ जैन गौरव-स्मृतियों * सेठ घेवरचंदजी दानचंदनी चौपडा; सुजानगढ़ : ... ..... ---- - . इस परिवार के वर्तमान मालिक जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी सम्प्रदाय के अनु यायी हैं । सेठ-पूनमचन्दजी के ४ पुत्रों में से सेठ घेवर चन्दजी एक बड़े प्रतिमा शाली और कर्मवीर पुरुष थे। संवत् १९३५ में आपने शुरू में ग्वालन्दी (बंगाल) में अपनी फर्म खोजी । आपने सं० १६६३ में कलकत्ता में भी अपनी एक ब्रांच खोली और जूट का व्यापार प्रारम्भ किया। जिससे आपको बहुत लाभ हुआ.व्यापार के अतिरिक्त धार्मिकता की ओर भी आपकी अच्छी रूचिथी। आप केदानचन्दजी नामक एक पत्र हुए। सेठ घेवरचन्दजी का स्वर्गवास सं० १६६१ में हो गया । ... . . . सेठ दानचन्दजी आप भी अपने पिताजी की तरह चतुर और व्यापार कुशल थे। थली के ओसवाल समाज में आप एक प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते थे। आप यहां के प्रायः सभी सार्वजनिक जीवन में सहयोग प्रदान करते रहते थे। आपने अपने स्वर्गीय पिताजी की स्मृति में श्री घेवर पुस्तकालय एवं श्री घेवर औषधालय की नींव रखी। जिनके लिये एक शानदार इमारत भी बनवा दी। आपने सर्व साधारण के लाभ के लिये स्थानीय स्टेशन पर एक विशाल धर्मशाला का भी निर्माण कराया। 1. आपने अपने स्वर्गीय पिताजी की स्मृति में ईर्टन बंगाल रेल्वे में ग्वालन्दों के स्टेशन का नाम बालन्दो घेवर बाजार कर दिया एवं उस स्थान पर आपने पब्लिक के लिये एक अस्पताल बनवाकर उसकी बिल्डिंग यूनियन बोर्ड को प्रदान कर दी। इसी प्रकार आप हमेशा धार्मिक, सामाजिक एवं पब्लिक कार्यों में सहायता प्रदान करते रहते थे । बीकानेर दरबार ने आपके कार्यों से प्रसन्न होकर आपको ऑनरेरी मजिस्टेट की उपाधि दी। आपके इस समय छ पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः:: विजयसिंहजी, पनेचन्दजी, प्रतापचन्दजी, जयचन्दजी, रामचन्दजी, दुलीचन्दजी हैं। आपका देहावसान संवत् १६६८ के ज्येष्ठ मास में हुआ था। .. श्री विजयचन्दजी :-वर्तमान में आप ही इस परिवार में मुख्य व्यक्ति हैं । आप भी वंश परम्परा के अनुसार ही व्यापार कुशल पुरुप हैं तथा अपनी फर्म. की प्रतिष्ठत वृद्धि उतरोतर कर रहे हैं। हाल ही में एक शिपिंग कम्पनी भी नेपचुनः नेविगेशन के नाम से खोली है। आप एक उदार, उच्च: विचार सम्पन्न एवं सम्: भ्रान्त सज्जन है । आप सदैव परोपकार रत, गरीबों एवं सार्वजनिक कार्यों व- संस्थाओं में सहायता प्रदान करने को प्रस्तुत रहते हैं। ... : ... . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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