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जैन-गौरव स्मृतियाँ
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। . इकतालीस हजार रुपये का उदार दान किया था।
आपने भी अपने जीवन काल में डेडलाख का दान कर अपनी परम्परा गत दान प्रियता को कायम रकावा । गंगाशहर से भीनासर तक पक्की.सड़क बन वाने में बाधा खर्च तथा परिश्रम कर जनहित का कार्य किया । जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहिरलालजी 'म० के आप अनन्य भक्त थे । आपके धार्मिक विचार स्तुत्य थे। क्रिया काण्ड में भी दृढ़ थे। ब्रह्मचर्य के प्रबल समर्थक थे। आपके सुपुत्र श्री तोलारामजी
और श्यामलालजी बड़े सेवाभावी, धर्मानुरागी
. तथा सरल हृदय सज्जन है। आपका व्यापार श्री तोलारामजी बांदिया विशेषतया कलकत्ता तथा मन्सुखे (आसाम में हैं। सिंधुपुरा (पंजाब) में आपकी विशाल जमींदारी है । कलकत्ते में आपका तरी का विशाल कारखाना है। ★ सेठ तनसुखदासजी रावतमलजी बोथरा गंगाशहर (बीकानेर) श्री सेठ रावतमलजी के पिता श्री तनसुखदासजी पारवा से बीकानेर गंगाशहर, चले आए । पारवे में आपने एक । धर्मशाला भी बनवाई थी। सेठ रावतमलजी : : का जन्म आपाढ़ शक्ला ७ सं० १९५० में हुआ। .
आपने साधारण स्थिति से व्यापार का सूत्र पात कर अपने प्रबल पुस्पार्थ के द्वारा अपनी फर्म को श्रीमंत फर्मों के समकक्ष खड़ा किया परन्तु रेल्वे दुर्घटना से ४६ वर्ष की आयु में ही सं० १६६६ वैशाख कृष्णा १३ को आपका स्वर्गवास हो गया । धर्म प्रेम तो आपके जीवन का प्रधान अंग था । स्व० पूज्य आचार्य जवाहरलालजी म. के प्रति आपकी उत्कट भक्ति और श्रद्धा थी। रेल्वे दुर्घटना से रेल्वे पर ५०) हजार की क्षति पर्ति का दावा किया जो कि रेलवे का .
" देना पड़ा। यह रकम धर्मार्थ कार्य में खर्च सेंट गवनगलनी बोथरा, गंगाशहर । करदी गई।
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