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________________ धारव-स्मृतियाँ है कि २६ वर्ष की अल्पायु में ही आपका स्वर्गवास हो गया। सेठ सौभाग्य- .. मलजी अाप ही के पुत्र हैं। श्री सेठ सौभाग्यमलजी सा० का शुभ जन्म सं० १३७२ माघ सुदि पूर्णिमा को हुआ। आए बड़े ही समाज प्रेमी, उदार चेता और व्यापार दक्ष हैं। स्थानीय "ओसवाल जैन-हाई स्कूल" के आप सभापति हैं और लोकल रेल्वे एडवायजरी बोर्ड के मेम्बर हैं। जैनजाति के अनुरुप गौरव मय कार्यों में उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं। आपके पुत्र कुं० सम्पतलालजी हैं। और सुशीला कुवर और सरला कुंवर नामक दो कन्यायें हैं। "श्री उम्मेदमलजी. अभयमलजी' के नाम से व्यापार होता है इसके अतिरिक्त आप मेवाड़ टेक्सटाईल मिल्स लि० भीलवाड़ा के मैनेजिंग डायरेक्ट हैं। बैंक ऑफ जयपुर एवं एडवर्ड मिल के डायरेक्टर है। हाल ही में आपने अजमेर में सम्पत मोटर कम्पनी के नाम से मोटर एजेन्मों का बहुत बड़ा व्यवसाय प्रारम्भ किया है। इसके अतिरिक्त भी आपका व्यवसायिक कार्य और भी विस्तृत है। 'मेसर्स उम्मेदमल अभयमल' के नाम से अजमेर.व बम्बई कोटा आदि कई स्थानों पर अपनी फर्मे प्रतिष्ठित हैं। सिंधी परिवार कलकत्ता (बाबू राजेन्द्रसिंहर्जा सिंघी एवं बाबू नरेन्द्रसिंहजी सिंघी ) वायु राजेन्द्रसिंहजी के पितामह बाबू डालचन्दजी सिंघी कलकत्ता के एक प्रमुख व्यवसायी थे। "हरिसिंह निहालचंद" नासक पेढी आप ही के पुरुपार्थ से बंगाल में जूट की पेढ़ियों में सबसे बड़ी गिनी जाने लगी। मध्यप्रांत स्थित . कोरिया स्टेट में कोयले की खानों की नींव डाली व एतदर्थ, "डालचंद बहादुरसिंह" नामक फर्म की स्थापना की जो कि हिंदुस्थान में एक अग्रगण्य फर्म गिनी जाती है । जैनधर्म के लोकहितकर सिद्धान्तों के प्रचार के लिए योग्य साहित्यनिर्माण करने की अभिलापा भी अति तीन थी पर उसे मूर्त रूप देने से पूर्व ही सन् १६२७ में उनका स्वर्गवास हो गया। बाबू डालचंद की साहित्य विषयक अपूर्ण अभिलापा की पूर्ति उनके सुयोग्य प्रसिद्ध पुत्र बाबू बहादुरसिंहजीने की | "भारतीय विद्याभवन" वम्बई से प्रकाशित सिंघी जैनग्रन्थमाला आप ही की साहित्य सेवा का फल है। आप द्वार संग्रहित अमूल्य संग्रह भारत के प्रसिद्धतम संग्रहालायों के समकक्ष हैं । साहित्य प्रवृत्ति में आपने लाखों व्यय किये । इसके अतिरिक्त सार्वजनिक हितकर प्रवृत्तियों में भी उदारता पूर्वक भाग लिया। श्रीयुत बाबू श्रीवहादुर- : सिंहजी का ५६ वर्ष की अवस्था में सन् १६४४ में स्वर्गवास हुआ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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