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* जैन-गौरव-स्मृतियां
के स्वयं प्रमाण हैं । उन्होंने ठीक लग्न के मौके पर माँस के निमित्त एकत्रकिये गये सैकड़ों पशुपक्षियों को लग्न में असहयोग के द्वारा जो अभयदान दिलाने का महान् साहस किया उसका प्रभाव सामाजिक समारम्भों में प्रचलित चिरकालीन मांस-भोजन की प्रथापर ऐसा पड़ा कि उस प्रथा की जड़ हिलसी गई। जैन परम्परा के आगे के इतिहास में जो अनेक अहिंसा पोषक और प्राणि रक्षक प्रयत्न दिखाई देते हैं उनके मूल में नेमिनाथ की इस त्याग घटना का संस्कार काम कर रहा है । नेमिनाथ के जीवन की यह मौलिक घटना उनके महान् ऐतिहासिक जीवन को प्रकट करती है.। इस घटना को विश्वसः नीय मानने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है।
तेवीसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथं की ऐतिहासिकता को अव सब विद्वान मानने लगे हैं । पहले कुछ विद्वान, जैनधर्म का प्रारम्भ भगवान महावीर से
मानने की भूल करते थे परन्तु बाद के संशोधनों से यह अब भगवान् सर्व मान्य तत्व हो गया है कि महावीर से पहले कई शताब्दियों पार्श्वनाथ पूर्व जैनधर्म का अस्तित्व था । भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासि
कता अब सर्वमान्य को चुकी है । इस विषय में अब किसीको सन्देह नहीं रहा । ऐतिहासिक विद्वानों ने इनका समय ईसा से पूर्व ८००वर्ष माना है। विक्रम संवत् पूर्व ८२० से ७२० तक का आपका जीवनकाल है। महावीर स्वामी के निर्वाण से २५० वर्ष पूर्व आपका निर्वाण काल है।
___ भगवान् पार्श्वनाथ अपने समय के युगप्रवर्तक महापुरुष थे। वह . युग तापसों का युग था । हजारों तापस उग्र शारीरिक क्लेशों के द्वारा साधना क्रिया करते थे। कितने ही तापस वृक्षोंपर औंधे मुंह लटका करते थे। कितने ही चारों ओर अग्नि जला कर सूर्य की आतापना लेते थे । कई अपने .
आपको भूमि में दबा कर समाधि लेते थे । अग्नितापसों का उस समय बड़ा.. प्रावल्य था । शारीरिक कष्टों की अधिकता में ही उस समय धर्म समझा जाता था। जो साधक जितना अधिक देह को कष्ट देता था वह उतना ही अधिक महत्व पाता था । भोलीभाली जनता इन विवेक शून्य क्रिया काण्डों में धर्म समझती थी; इसप्रकार उससमय देहदण्ड का खूब दौरदौरा था । भगवान पार्श्वनाथ ने धर्म के नामपर चलते हुए उस पाखण्ड के विरुद्ध प्रवलं । शान्ति की । उन्होंने स्पष्ट रूप से घोपित किया कि विवेक हीन क्रिया काण्डों ,