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जैन गौरव-स्मृतियाँ
विद्यापति, कवीर, सूर, जायसी और तुलसी के यही उज्जीवक और प्रथम प्रेरक रहे हैं जैनों ने अपभ्रंश साहित्य की रचना और उसकी सुरक्षा में सबसे अधिक काम किया है।"
जब से भगवान महावीर के द्वारा लोकभांपा को आदर दिया गया तब से ही लोकभाषाओं की प्रतिष्ठा कायम हो सकी। हमारे देश की भाषा का प्रश्न भी इसी आधार-बिन्दु पर हल किया गया है और हिन्दी को राष्ट्र भापा का रूप मिल सका है।
प्राचीन भारतीय साहित्य को जैनों के द्वारा दिये गये महत्त्वपूर्ण योगदान के सम्बन्ध में प्रोफेसर बुलहर का निम्न कथन नितांत यथार्थ है:
"In grammer, in astronomy as well as in all borrich85 of belles petters the achievements of the Jaing have bien so great that even their opponents have takon not
1ce of them and that sume of thoir wirki are of importance 11Cr European scionce even to tiny. In it sonth of India,
where they have also promoted the development of these Inuguages The Caarrese, Tamil and Telugu li'crary languages rest on the foundations creut-d by the Jain monks Though this activity has led thom far away from their particular aims, Yet it has socured for them on importnnt place in the history oi Indian literature and civilisation",
__"व्याकरण, खगोल और साहित्य की सब शाखाओं में जैनों के कार्य इतने विशाल हैं कि उनके प्रतिद्वन्द्रियों ने भी उनकी प्रशंसा की है। इनके साहित्य का कतिपय भाग आज भी पाश्चात्य विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। दक्षिणभारत की भाषायों को साहित्य का म्प देने का और इन्हें विकसित करने का कार्य जैन मुनियों ने किया। पिसा करने में उनके उद्देश्यों में कुछ ज्ञात हुई तदपि हम भारतीय साहित्य और संस्कृति में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान सुरक्षिन हो गया है।"