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जैन - गौरव - स्मृतियाँ
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विस्तृत वर्णन दिया जा चुका है। जैनदर्शन और दार्शनिकों के सम्बन्ध में विशेष जानने के लिए विद्याभूषण डॉ सतीशचन्द्र द्वारा लिखित Medioval Schovl of Indian. Logie नामक ग्रन्थ देखना चाहिए ।
व्याकरण :
शाकटायन, देवनंदि पूज्यपाद, हेमचन्द्र, रामचन्द्रसूरि आदि प्रसिद्ध वैयाकरण हुए हैं। महर्षि पाणिनि ने अपने व्याकरण में शाकटायन का उल्लेख किया हैं । पूज्यपाद देवनंदि ने जैनेन्द्र व्याकरण लिखा है। इस पर नौंवी चारहवीं शताब्दी के बीच में हुए आचार्य अभयनंदि ने बारह हजारश्लोक प्रमाण महावृत्ति लिखी । श्रुतकीर्ति ने तैतीस हजार लोक प्रमाण पञ्चवस्तु प्रक्रिया लिखी । प्रभाचन्द्र ने सोलह हजार लोक प्रमाण शब्दाम्भोज भास्कर न्यास लिखा । हेमचन्द्राचार्य ने सिद्ध हैमव्याकरण की रचना की । इनके अतिरिक्त रामचन्द्रसूरि, शाकटायन द्वितीय, मलयागिरी आदि जैनाचार्यों ने व्याकरण- शास्त्र पर बड़े २ ग्रन्थों की रचना की है। आचार्य हेमचन्द्र तो अपभ्रंश के पारिग्नि के रूप में विश्वविख्यात हैं ।
काव्य :---
जैनाचार्यों ने विपुल प्रमाण में काव्य और महाकाव्यों की रचना करके संस्कृत साहित्य को चारचाँद लगा दिये हैं । जैनाचार्यों के द्वारा रचे गये महाकाव्य कालिदास, हर्ष माव और वार के ग्रन्थों से किसी तरह कम नहीं हैं । श्री हर्ष के नैपध चरित महाकाव्य के साथ स्पर्धा करने वाला देव विमलगणी का हीरसौभाग्य महाकाव्य, कालिदास के रघुवंश की समानता करने वाला हेमविजयगणि का विजयप्रशस्तिकाव्य, जैनेतर पंचकाव्यों से. से टक्कर लेने वाले जैनकाव्य जैसेकि जयशेखर का जैनकुमारसंभव, वस्तुपाल की नरनारायणानन्द काव्य, वालचन्द्रसूरि का वसंतविलास मेरुतुङ्ग सूरि का जैनमेघदूत, कविहरिश्चन्द्र का धर्मशर्माभ्युदय, कवि वाग्भट्ट का नेमिनिर्वाण, निभद्र का शान्निाथ चरित्र, अभयदेव का जयंत विजय आदि २ हैं । अठारहवीं शताब्दी के मेघविजय उपाध्याय ने सप्तसंधान महाकाव्य लिखा जिसका प्रत्येक लोक सात महापुरुषों पर समान रूप से लागू होता है ।
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