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________________ ISISeजैन-गौरव-स्मृतियाँ * S te शास्त्र को पल्लवित किया । “दिग्नाग के समय से बौद्ध और बौद्ध तर प्रमाण शास्त्र में जो संघर्ष चला उसके फलस्वरुप अकलंक ने स्वतंत्र जैनदृष्टि से अपने पूर्वाचार्यों की परम्परा का ध्यान रखते हुए जैनप्रमाणशास्त्र का . व्यवस्थित निर्माण और स्थापन किया" । इनके बनाये हुए ग्रन्थ इस प्रकार हैंअष्टशती, लघीयस्त्रय, प्रमणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय और तत्वार्थ की राजवार्तिक टीका । विद्यानन्द:--- विक्रम की नौवीं शताब्दी में दिगम्बराचार्य विद्यानन्द हुए। इन्होंने . 'अष्टसहस्त्री' नामक प्रौढ ग्रन्थ लिखकर अनेकान्तवाद पर होने वाले आक्षेपों का तर्कसंगत उत्तर दिया है। तत्त्वार्थसूत्र पर श्लोकवार्तिक नाम से टीका लिखी है । आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, सत्यशासन परीक्षा, युक्त्यनुशासनटीका, श्रीपुरपार्श्वनाथ स्तोत्र, विद्यानन्द महोदय (अनुपलब्ध ) ग्रन्थ भी आपके हैं। उद्योतनसूरी ( दाक्षिण्यांक सूरी):--- इन प्राचार्य ने वि० सं० ८३४ में "कुवलयमाला" नामक प्रसिद्ध कथा प्राकृतभाषा में बनाई । चम्पू ढंग की यह कथा प्राकृतसाहित्य की अमूल्य निधि है। । आचार्य जिनसेनः-इन्होंने हरिवंश पुराण की रचना की। वीरसेन-जिनसेनः---- इन दिगम्बर आचार्यों ने धवला और जयधवला नामक विस्तृत टीकाएँ लिखी हैं । दिगम्बर परम्परा में इनका बड़ा महत्व है । धवला और जयधवला के वीस हजार श्लोकों का निर्माण वीरसेन ने किया। जय । धवला के शेष चालीस हजार श्लोक उनके शिष्य जिनसेन ने लिखे हैं। जिनसेन ने पार्वाभ्युदयकाव्य भी लिखा है । जिनसेन और इनके शिष्य गुणभद्र ने मिलकर आदिपुराण और उत्तरपुराण की रचना की। धनंजय.-इन्होंने धनंजय नाम माला नामक कोश ग्रन्थ लिखा है । द्विसंधान काव्य ( राघव-पाण्डवीय ) तथा विपापहार स्तोत्र इनकी रचनाएँ हैं।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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